झारखंड की धरती पर स्थित भगवान जगन्नाथ का विशाल मंदिर ( Jagannath Temple in Jharkhand ) न केवल आस्था और विश्वास का केंद्र है, बल्कि यह आदिवासी और सदान समुदाय के सम्मिलित विश्वास का प्रतीक भी है। रांची से लगभग 10 किलोमीटर दूर बड़कागढ़ क्षेत्र की 250 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित यह भव्य मंदिर एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल है। जोहार दोस्तों, झारखण्ड सर्कल की आज की इस पोस्ट में जानेंगे भगवान जगन्नाथ मंदिर के बारे में।
परिचय : आस्था का केंद्र – Introduction : Center of Faith
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झारखंड का जगन्नाथ मंदिर, रांची से लगभग 10 किलोमीटर दूर बड़कागढ़ क्षेत्र की 250 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर केवल धार्मिक महत्व का नहीं है, बल्कि यह आदिवासी और सदान समुदाय के सम्मिलित विश्वास का प्रतीक भी है। यहाँ किसी भी संप्रदाय या जाति का कोई महत्त्व नहीं है, यह मंदिर सभी के लिए खुला है। आदिवासी समुदाय भी अन्य धर्मावलंबियों के समान भक्ति और श्रद्धा के साथ भगवान् जगन्नाथ के दर्शन करते हैं।
मंदिर निर्माण की रोचक कहानी – Interesting story of temple construction
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भगवान् जगन्नाथ के इस भव्य मंदिर का निर्माण 25 दिसंबर, 1691 को बड़कागढ़ के ठाकुर महाराजा रामशाही के चौथे पुत्र ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव ने करवाया था। वर्तमान में दिखाई देने वाला मंदिर 1991 में करीब एक करोड़ की लागत से बनाया गया। हालांकि, मंदिर का निर्माण अब भी जारी है।
मौसीबाड़ी: आस्था का दूसरा केंद्र – Mousibadi: Second center of faith
मुख्य मंदिर से आधा किलोमीटर दूर स्थित मौसीबाड़ी में नौ दिनों तक मेला लगता है, जिसमें पूरे झारखंड से लोग आते हैं। भगवान् जगन्नाथ स्वामी, भाई बलदेव और बहन सुभद्रा का दर्शन करने के लिए भक्तजन यहाँ उपस्थित होते हैं। साल में आठ दिनों तक भगवान् मौसीबाड़ी में निवास करते हैं। यहाँ धातु से बनी वंशीधर की मूर्तियाँ भी हैं, जिन्हें नागवंशी राजा ने मराठाओं से विजय चिह्न के रूप में प्राप्त किया था।
पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तर्ज पर निर्माण – Construction on the lines of Jagannath Temple of Puri
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वर्तमान मंदिर का निर्माण पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तर्ज पर किया गया है। गर्भ गृह के आगे भोग गृह और भोग गृह के पहले गरुड़ मंदिर स्थित है, जहाँ बीच में गरुड़जी विराजमान हैं। गरुड़ मंदिर के आगे चौकीदार मंदिर है। ये चारों मंदिर एक साथ बने हुए हैं। 1987 में मंदिर न्यास समिति की देखरेख में एक विशाल छज्जे का निर्माण हुआ, जिससे अब यहाँ एक विशाल भवन बन गया है।
रथ यात्रा: भक्ति का महासंगम – Rath Yatra: Great Confluence of Devotion
झारखंड के पर्व-त्योहार, मेले और पर्यटन स्थल भगवान् के विग्रह रथयात्रा के दिन इस स्थल के पास देखने को मिलते हैं। भगवान् की रथ यात्रा हर साल आषाढ़ द्वितीया शुक्ल पक्ष को आयोजित होती है। आठ दिनों तक मौसीबाड़ी में भगवान् विश्राम करते हैं और पूजा की प्रक्रिया यहीं पूरी होती है। नवें दिन भगवान्, अपने बड़े भाई व बहन के साथ मुख्य मंदिर के लिए प्रस्थान करते हैं। इस वापसी रथ को घुरती रथ भी कहा जाता है।
भक्तों का उत्साह और सुरक्षा प्रबंध : Enthusiasm and security arrangements for devotees
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मौसीबाड़ी जाने और आने के क्रम में रथ खींचने के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। भक्तों की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं के अलावा पुलिस बल के जवान भी तैनात किए जाते हैं। रथ खींचने की यह प्रक्रिया भक्तों के उत्साह और भक्ति का जीवंत प्रमाण है।
संस्कृति और श्रद्धा का संगम – Confluence of culture and faith
भगवान जगन्नाथ का मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह झारखंड की संस्कृति, आस्था और श्रद्धा का संगम भी है। यहाँ आने वाले हर भक्त को यह मंदिर एक विशेष अनुभव और आंतरिक शांति प्रदान करता है। भगवान् जगन्नाथ का यह मंदिर झारखंड के गौरव और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है।