अभी आप पढ़ने जा रहे हैं , योगदा मठ ( Yogda Math Ranchi ) के बारे में | राँची स्टेशन से थोड़ी दूरी पर स्थित योगदा आश्रम शांति का परम धाम है। शहर के बीचो-बीच स्थित इस आश्रम में पहुँचने पर शहर का सारा शोरगुल सुनाई देना बंद हो जाता है। यहाँ आने पर लगता है, हम किसी दूसरी दुनिया में आ गए हैं, यहाँ सिर्फ शांति-ही-शांति है। प्रांगण की हरियाली, विभिन्न प्रकार के फूल खिलखिलाते हुए हर आगंतुक का स्वागत करते हैं और उन्हें सुकून देते हैं। वैसे तो यहाँ हमेशा कार्यक्रम होते रहते हैं, लेकिन ‘शरद संगम’ कार्यक्रम यहाँ का सबसे बड़ा आयोजन होता है। यह शरद ऋतु में होता है।
राँची में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया की स्थापना – Yogda Satsanga Society of India established in Ranchi

राँची में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया की स्थापना 1917 में परमहंस योगानंद ने की थी। 7 मार्च, 1977 को उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी करते हुए भारत सरकार ने कहा था, “उनका स्थान भारत के महानतम संतों में है। उनका कार्य लगातार बढ़ रहा है। उनकी कांति विश्वभर के सत्यान्वेषियों को ईश्वर-प्राप्ति के मार्ग पर आकर्षित कर रही है।” युवकों की शिक्षा में परमहंसजी की गहन अभिरुचि थी। सन् 1918 में कासिम बाजार के महाराज मणींद्र चंद्र नंदी ने राँची में अपने महल और पचीस एकड़ भूमि आश्रम एवं विद्यालय के लिए दान दे दी, जिसे योगदा सत्संग ब्रह्मचर्य विद्यालय कहा जाता था। अब यह योगदा सत्संग शाखा मठ बन गया, जो पत्राचार कार्यालय एवं योगदा सत्संग पाठमाला एवं योगदा सत्संग सोसाइटी के प्रकाशनों के वितरण केंद्र का काम करता है।

1920 में उन्हें उनके गुरु ने अमेरिका में हो रहे उदारवादियों के विश्व धर्म सम्मेलन में भारत के प्रतिनिधि के रूप में भेजा। उस समय उन्होंने पूरे अमेरिका का दौरा किया और व्याख्यान दिया। 1936 में परमहंसजी ने योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया (वाई.एस.एस.) को एक असांप्रदायिक और धर्मार्थ संस्था के रूप में पंजीकृत करवाया। वाई. एस. एस. का पंजीकृत मुख्य कार्यालय योगदा सत्संग मठ है, जो दक्षिणेश्वर, कलकत्ता में गंगा किनारे स्थित है।
योगानंद परमहंस – Yogananda Paramahamsa

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में परमहंस योगानंदजी का जन्म 5 जनवरी, 1893 को एक बंगाली परिवार में हुआ था। माता-पिता ने उनका नाम मुकुंद लाल घोष रखा। जन्म के कुछ समय बाद उनकी माता, उन्हें अपने गुरु लाहिड़ी महाशय के आशीर्वाद के लिए बनारस ले गईं। लाहिड़ी महाशय ने कहा, “छोटी माँ, तुम्हारा पुत्र एक योगी होगा।” परम सत्य की खोज के क्रम में वे अपने गुरु स्वामी युक्तेश्वर गिरिजी के पास पहुँचे। सन 1915 में दस वर्षों के आध्यात्मिक प्रशिक्षण के बाद योगानंदजी ने संन्यास का स्वामी पद ग्रहण किया। परमहंस ने मार्च 1952 में अपना शरीर त्यागा।
कहाँ-कहाँ है योगदा सत्संग सोसाइटी ? – Where are the Yogda Satsang Society ?
कलकत्ता, राँची, द्वाराहाट और नोएडा में आश्रम है। इनके अतिरिक्त योगदा सत्संग सोसाइटी के देशभर में दो सौ के करीब ध्यान केंद्र एवं मंडलियाँ हैं। विदेशों में 340 से ऊपर शाखाएँ हैं। सालाना तेरह करोड़ रुपए की राशि दान के माध्यम से आती है और संस्था द्वारा संचालित कई जनहितकारी कार्यों में साढ़े बारह करोड़ रुपए खर्च हो जाते हैं। पूरे आश्रम का संचालन राँची से होता है, जो 17 एकड़ में फैला है।
क्रिया योग का पुनरुत्थान – Resurgence of Kriya Yoga

2012 में आश्रम में क्रिया योग की 150 वीं वर्षगाँठ मनाई गई। परमहंसजी ने अपनी योगी कथामृत में एक अध्याय क्रियायोग विज्ञान के लिए समर्पित किया है। स्वामीजी ने स्पष्ट किया कि यह वही विज्ञान है, जिसकी भगवान् कृष्ण ने भागवतगीता में चर्चा की है और जिसका ज्ञान महर्षि पतंजलि को भी था। यह एक सरल मन: कायिक प्रणाली है, जिसके द्वारा मानव-रक्त कार्बन रहित तथा ऑक्सीजन से प्रपूरित हो जाता है। इस अतिरिक्त ऑक्सीजन के अणु जीवन प्रवाह में रूपांतरित होकर मस्तिष्क और मेरुदंड के चक्रों को नव शक्ति से पुनः पूरित कर देते हैं। प्राकृतिक नियम या माया के अंतर्गत मनुष्य की प्राण शक्ति का प्रवाह बहिर्विश्व की ओर होता है, जिससे उस शक्ति का प्रवाह इंद्रियों के दुरुपयोग के कारण व्यर्थ ही खत्म हो जाता है। मानसिक प्रक्रिया प्राण शक्ति अंतर्जगत् की ओर बहती है और मेरुदंड स्थित सूक्ष्म शक्तियों के साथ पुनः मिल जाती है। इस प्रकार प्राण शक्ति के प्रबलीकरण द्वारा योगी के शरीर तथा मस्तिष्क के कोष आध्यात्मिक अमृत से पुनर्नवीन हो जाते हैं। परमहंसजी ने कहा था, “क्रिया गणित की तरह काम करता है। इसके परिणाम सुनिश्चित हैं।”
सामाजिक दायित्व – Social Obligation

योगदा सत्संग सोसाइटी स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों, डिस्पेंसरी तथा चिकित्सा शिविरों का संचालन करती है। पूरे भारत में योग्य विद्यार्थियों को छात्रवृत्तियाँ प्रदान करती है। अनाथालयों एवं कुष्ठ रोगियों की कॉलोनियों को सहायता प्रदान करती है। प्राकृतिक आपदाओं से ग्रसित लोगों की आपातकालीन सहायता भी उपलब्ध कराती है।
संन्यास प्रशिक्षण एवं विश्व प्रार्थना मंडल – Sanyas Training and World Prayer Circle
1917 में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया एवं 1925 में लॉस एंजिलिस में सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप के अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय की स्थापना के साथ जो कार्य शुरू किया गया, वह आज भी अनवरत जारी है। परमहंसजी की रचनाएँ, उनके व्याख्यान, कक्षाएँ, अनौपचारिक भाषण आदि का प्रकाशन के साथ-साथ, जिसमें क्रिया-योग- ध्यान पर विस्तृत पाठशाला शामिल है, यह सोसाइटी योगदा सत्संग, सेल्फ रियलाइजेशन मंदिरों, आश्रमों एवं ध्यान केंद्रों की देखभाल करती है, जो पूरे विश्व में फैले हुए हैं।
योगी कथामृत – Yogi Kathamrit

योगी कथामृत परमहंस योगानंद के जीवन एवं उनकी शिक्षाओं की गाथा है। यह उनकी ऐसी आत्मकथा है, जिसका देश-दुनिया के सभी महत्त्वपूर्ण भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। अभी 2012 के शरद उत्सव के पहले दिन संस्कृत में इसका विमोचन झारखंड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने किया। इसका पहला प्रकाशन 1946 में हुआ था। तब से हर साल यह छपता है। विश्व के कई विश्वविद्यालयों में यह पाठ्यपुस्तक के रूप में भी स्वीकृत है। इसे शताब्दी के श्रेष्ठतम सौ आध्यात्मिक पुस्तकों में चुना गया है। इस पुस्तक में परमहंस के विलक्षण बचपन के अनुभव, किसी ब्रह्मज्ञानी गुरु की उत्साही खोज में सारे भारत भर के अनेक संतों एवं ज्ञानियों से मुलाकातें, अपने गुरु के आश्रम में 10 साल का प्रशिक्षण आदि का जिक्र बड़े सरल ढंग से किया गया है।
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क्या आप योगदा मठ के बारे में जानते हैं? यह आध्यात्मिकता और ध्यान का एक प्रमुख केंद्र है। अगर आपने कभी इस मठ का दौरा किया है या इसके बारे में कुछ जानते हैं, तो कृपया अपने अनुभव हमारे साथ कमेंट के माध्यम से साझा करें। हमें आपकी कहानियाँ और अनुभव सुनकर बहुत खुशी होगी।
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