Santhal Janjati ( संथाल जनजाति ) | About Santhal tribe of jharkhand | Jharkhand Circle

Akashdeep Kumar
Akashdeep Kumar - Student
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संथाल जनजाति ( Santhal Tribe )  भारत की प्रमुख आदिवासी जनजाति है। वे पश्चिम बंगाल, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, बिहार और असम राज्यों में बसे हुए हैं। संथाल लोग ( santhal people ) अपनी संस्कृति, परंपराओं और भाषा को महत्व देते हैं। संथाल जनजाति भारतीय समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।अन्य जाति द्वारा शब्द ‘संताड़ी’ को अपने-अपने क्षेत्रीय भाषाओं के उच्चारण स्वरूप संथाल, संताल, संवतल, संवतर आदि के नाम से संबोधित किए। जबकि संथाल, संताल, संवतल, संवतर आदि ऐसा कोई शब्द ही नहीं है। शब्द केवल “संथाली” है, जिसे उच्चारण के अभाव में देवनागरी में “संथाली” और रोमन में Santali लिखा जाता है। आइये , Jharkhand Circle  के इस  Post  में आज संथाल  जनजाति ( santhal tribe )  के बारे जानते है – 

संथाल जनजाति का परिचय | Introduction to Santhal Tribe

यह झारखण्ड की सर्वाधिक जनसंख्या ( 35 प्रतिशत ) वाली जनजाति है। जनजातियों की कुल जनसंख्या में इनका प्रतिशत 35%  है। यह भारत की तीसरी सर्वाधिक जनसंख्या वाली जनजाति है। ( प्रथम भील तथा दूसरी – गोंड ) झारखण्ड आने से पूर्व इनका निवास प. बंगाल में था, जहाँ इन्हें ‘साओतार’ कहा जाता है।इनका सर्वाधिक संकेन्द्रण झारखण्ड के उत्तर–पूर्वी क्षेत्र में है जिसके कारण इस क्षेत्र को संथाल परगना कहा जाता है। संथाल परगना के अतिरिक्त हजारीबाग, बोकारो, चतरा, राँची, गिरिडीह, सिंहभूम, धनबाद, लातेहार तथा पलामू में भी यह जनजाति पायी जाती है। राजमहल पहाड़ी क्षेत्र में इनके निवास स्थान को ‘दामिन-ए-कोह’ कहा जाता है। संथाल जनजाति का संबंध प्रोटो-आस्ट्रेलायड प्रजाति समूह से है। प्रजातीय और भाषायी दृष्टि से संथाल जनजाति ऑस्ट्रो एशियाटिक समूह से साम्यता रखती है। यह जनजाति बसे हुए किसानों के समूह से संबंधित है। लुगु बुरू को संथालों का संस्थापक पिता माना जाता है। संथालों की प्रमुख भाषा संथाली है जिसे 2004 में संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है। इसके लिए संसद में 92वाँ संविधान संशोधन, 2003 पारित किया गया था। संथाली भाषा की लिपि ‘ओलचिकी’ है, जिसका आविष्कार रघुनाथ मुर्मू द्वारा किया गया था।

संथाल जनजाति के वस्त्र | Clothing of the Santhal Tribe

आमतौर पर संथाल जनजाति कांचा, कुपनी, पड़हान, पाटका, दहड़ी, लुंगी पहनते है |

संथाल जनजाति के खान-पान | Food and drink of the Santhal tribe

दिन में सामान्यतः तीन बार खाते हैं बासक्याक (जलपान), माजवान (दोपहर के समय), कदोक (रात का भोजन)
मुख्य भोजन – दाका-उरू (दाल-भात) एवं सब्जी, मडुए की दलिया, महुआ, कुर्थी दाल आर्थिक रूप से कमजोर संथाल जोण्डरा-दाका (मकई की दलिया) खाते हैं। इनमें हड़िया का प्रचलन है, जिसे चावल, मडुआ या कोदो से बनाया जाता है।

संथाल जनजाति में वर्ण/वर्ग | Class in Santhal tribe

संथालों को चार हडों (वर्ण/वर्ग) में विभाजित किया जाता है:-

☆ ” किस्कू हड ”  जिसे राजा कहते है |

☆ ” मुरमू हड ” जिसे पुजारी कहते है |

☆ ” सोरेन हड ” जिसे सिपाही कहते है |

☆ ” मरूडी हड ” जिसे कृषक कहते है |

संथाल जनजाति गोत्र एवं उनके प्रतीक है। Santhal tribe gotras and their symbols

संथाल जनजाति में 12 गोत्र  (किली) पाया जाता है। इन 12 गोत्रों के उप-गोत्रों (खूट) की कुल संख्या 144 है।

✿ मरांडी गोत्र का प्रतीक ” माडरा घास ” है।

✿ हांसदा  गोत्र का प्रतीक ” जंगली हंस ” है।

✿ मुरम्  गोत्र का प्रतीक ” नीलगाय ” है।

✿ चोडे  गोत्र का प्रतीक  ” छिपकली ” है।

✿ पौड़िया गोत्र का प्रतीक ” कबूतर ” है।

✿ बेदिया गोत्र का प्रतीक ” भेड़ा ” है।

✿ बेसरा गोत्र का प्रतीक ” बाज पक्षी ” है।

✿ किस्कु गोत्र का प्रतीक है।

✿ हेम्ब्रम गोत्र का प्रतीक ” पान पत्ता ” है।

✿ सोरेन गोत्र का प्रतीक ” पक्षी ” है।

✿ टुडू गोत्र का प्रतीक ” पक्षी ” है।

✿ बास्के गोत्र का प्रतीक ” नाग सांप ” है।

संथाल जनजाति में विवाह और विवाह के प्रकार | Marriage and types of marriage in Santhal tribe 

संथाल जनजाति के लोग चित्रकारी के कार्य में अत्यंत निपुण होते हैं। इस जनजाति में एक विशेष चित्रकला पद्धति प्रचलित है, जिसे ‘कॉम्ब-कट चित्रकला’ (Comb-Cut Painting) कहा जाता है। इस चित्रकारी में विभिन्न प्रकार के बर्तनों का चित्र बनाया जाता है। इस जनजाति में गोदना गोदवाने का प्रचलन पाया जाता है। पुरूषों के बांये हाथ पर सामान्यतः सिक्का का चित्र होता है तथा बिना सिक्का के चित्र वाले पुरूष के साथ कोई लड़की विवाह करना पसंद नहीं करती है। संथाल एक अंतर्जातीय विवाही समूह है तथा इनके मध्य सगोत्रीय विवाह निषिद्ध ( consanguineous marriage prohibited ) होता है। संथाल जनजाति में बाल विवाह की प्रथा का प्रचलन नहीं है। संथाल जनजाति में विभिन्न प्रकार के विवाहों (बापला) का प्रचलन है |

● किरिंग बापला –  सर्वाधिक प्रचलित विवाह है जिसके अंतर्गत माता-पिता द्वारा मध्यस्थ के माध्यम से विवाह तय किया जाता है। 

● गोलाइटी बापला – गोलट विवाह

● टुनकी दिपिल बापला – गरीब परिवारों में प्रचलित। कन्या को वर के घर लाकर सिंदूर दान करके विवाह ।

● धरदी जांवाय बापला – विवाह के बाद दामाद को घर जंवाई बनके रहना पड़ता है।

● अपगिर बापला – लड़का-लड़की में प्रेम हो जाने के बाद पंचायत की सहमति से विवाह ।

● इतुत बापला – पसंद के लड़के से विवाह की अनुमति नहीं मिलने पर लड़के द्वारा किसी अवसर पर लड़की को सिंदूर लगाकर विवाह। बाद में लड़की के घरवालों द्वारा स्वीकृति दे दी जाती है।

● निर्बोलक बापला – लड़की द्वारा हठपूर्वक पसंद के लड़के के घर रहना तथा बाद में पंयाचत के माध्यम से विवाह 

● बहादुर बापला – लड़का-लड़की द्वारा जंगल में भागकर प्रेम विवाह ।

● राजा-राजी बापला बापला – गाँव की स्वीकृति से प्रेम विवाह ।

● सांगा बापला बापला – विधवा/तलाकशुदा स्त्री का विधुर / परित्यक्त पुरूष से विवाह 

● किरिंग जवाय बापला – लड़की द्वारा शादी से पहले गर्भधारण कर लेने के बाद इच्छुक व्यक्ति से लड़की का विवाह ।

संथालों में विवाह के समय वर पक्ष द्वारा वधु पक्ष को वधु मूल्य दिया जाता है, जिसे पोन कहते हैं।संथाल समाज मे सर्वाधिक कठोर सजा बिटलाहा  है। यह सजा तब दी जाती है जब कोई व्यक्ति निषिद्ध यौन संबंधों का दोषी पाया जाता है। यह एक प्रकार का सामाजिक बहिष्कार है।

संथाल जनजाति में ‘ सामाजिक व्यवस्था से संबंधित विभिन्न नामकरण ‘ | ‘Different nomenclature related to social system’ in Santhal tribe

❁´युवागृह को संथाल जनजाति में  घोटुल के नाम से  सम्बोधित किया जाता है |

❁´विवाह को संथाल जनजाति में   बापला के नाम से  सम्बोधित किया जाता है |

❁´वधु मूल्य को संथाल जनजाति में  पोन के नाम से  सम्बोधित किया जाता है |

❁´गाँव को संथाल जनजाति में  आतों के नाम से  सम्बोधित किया जाता है |

❁´ग्राम प्रधान को संथाल जनजाति में   माँझी के नाम से  सम्बोधित किया जाता है |

❁´उप-ग्राम प्रधान को संथाल जनजाति में   प्रानीक/प्रमाणिक के नाम से  सम्बोधित किया जाता है |

❁´माँझी का सहायक को संथाल जनजाति में  जोगमाँझी के नाम से  सम्बोधित किया जाता है |

❁´गाँव का संदेशवाहक को संथाल जनजाति में   गुड़ैत/गोड़ाइत के नाम से  सम्बोधित किया जाता है |

ग्राम प्रधान अर्थात् माँझी के पास प्रशासनिक एवं न्यायिक अधिकार होते हैं। माँझीथान में संथाल गाँव की पंचायतें बैठती हैं। इस जनजाति में महिलाओं का माँझीथान में जाना वर्जित होता है।

संथाल जनजाति के पर्व / त्योहार | Festivals of Santhal Tribe

इस जनजाति में माह को ‘बोंगा’ के नाम से जाता है तथा ‘माग बोंगा’ माह से वर्ष की शुरूआत मानी जाती है।आषाढ़ माह में संथालों के त्योहार की शुरूआत होती है।

● बा-परब ( सरहुल )

● करमा ( यह प्रकृति संबंधी त्योहार है )

● ऐरोक ( आषाढ़ माह में बीज बोते समय )

● बंधना / बंदना ( यह त्योहार मुख्यत: पालतू जानवरों से सम्बन्धित है | इसमें कपड़ों तथा गहनों से जानवरों को सजाया जाता है ) 

● हरियाड ( सावन माह में धान की हरियाली आने पर अच्छी फसल हेतु )

● सोहराई ( कार्तिक अमावस्या को पशुओं के सम्मान में )

● सकरात ( पूस माह में घर-परिवार की कुशलता हेतु ) 

● भागसिम ( माघ माह में गांव के ओहदेदार को आगामी वर्ष हेतु ओहदे की स्वीकृति देने हेतु )

● बाहा ( फागुन माह में शुद्ध जल से खेली जाने वाली होली आदि संथालों के प्रमुख त्योहार हैं )

संथाल जनजाति में कृषि, धर्म और संस्कृति | Agriculture, Religion and Culture in Santhal tribe 

संथाल मूलतः खेतिहर हैं जिनका रूपान्तरण कृषकों के रूप में हो रहा है। संथाल चावल से बनने वाले शराब (स्थानीय मदिरा) का सेवन करते हैं जिसे ‘हड़िया’  या ‘पोचाई’ कहा जाता है। संथाल जनजाति के लोग बुनाई के कार्य में अत्यंत कुशल होते हैं। संथालों का प्रधान देवता सिंगबोंगा या ठाकुर है जो सृष्टि का रचयिता माना जाता है।

संथालों का दूसरा प्रमुख देवता मरांग बुरू है। संथालों का प्रधान ग्राम देवता जाहेर-एरा है जिसका निवास स्थान जाहेर थान (सखुआ या महुआ के पेड़ों के झुरमुट के बीच स्थित) कहलाता है। संथालों के गृह देवता को ओड़ाक बोंगा कहते हैं। संथाल गाँव के धार्मिक प्रधान को नायके कहा जाता है। जादू-टोने के मामले में संथाली स्त्रियाँ विशेषज्ञ मानी जाती हैं। संथालों में शव को जलाने तथा दफनाने दोनों प्रकार की प्रथा प्रचलित है।

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By Akashdeep Kumar Student
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