जोहार और नमस्कार दोस्तों, Jharkhand circle के इस पोस्ट आप पढ़ने जा रहे है झारखण्ड राज्य की दूसरी बड़ी पर्व – कर्मा त्योहार / करम पूजा /करमा पर्व ( karam puja ) के बारे में ( कर्मा त्योहार / करम पूजा / करमा पर्व के बारे में। Karam Puja 2024 – Second Famous Festival Of Jharkhand )। कर्मा पर्व, झारखंड राज्य का एक महत्वपूर्ण और प्रमुख पर्व है, जो सदाचार, परंपरा और सामाजिक एकता की महत्वपूर्ण प्रतीक है-
कर्मा पूजा का परिचय | Introduction to Karam Puja

झारखंड का दूसरा सबसे बड़ा पर्व है करमा, जिसे आदिवासी और सदान मिल-जुलकर सदियों से मनाते आ रहे हैं। मान्यता के अनुसार करमा पर्व के अवसर पर बहनें अपने भाइयों की दीर्घायु एवं मंगलमय भविष्य की कामना करती हैं। यह सर्वविदित है कि जनजातियों ने जिन परंपराओं एवं संस्कृति को जन्म दिया, सजाया-सँवारा, उन सबों में नृत्य, गीत और संगीत का परिवेश प्रमुख है।
2024 में कर्मा पूजा कब है ? | In 2024, When is Karma Puja
Karma Puja 2024 : इस साल करमा पर्व 14 सितंबर शनिवार को है। करमा पर्व झारखंड के प्रमुख त्यौहारों में से एक है और काफी लोकप्रिय है।
करमा पर्व क्यों मनाया जाता है ? | Why karma Festival is Celebrated

झारखंड का दूसरा सबसे बड़ा प्राकृतिक पर्व है करम पर्व, जो मनाया जाता है कि फसल अच्छी हो. राज्य का पहला सबसे बड़ा पर्व है सरहुल, जो मनाया जाता है जब पेड़ों में फूल और पत्तियाँ आना शुरू होते हैं। इसके फूल सरहुल में अच्छी बारिश के लिए पूजे जाते हैं और साल या सखुवा के पेड़ों पर अपनी सुंदरता हर जगह बिखेर देते हैं। जब अच्छी बारिश होती है, किसान अपनी फसल लगाते हैं और करमा पर्व को खुशी से मनाया जाता है जब उनका काम पूरा हो जाता है। साथ ही बहने अपने भाइयों को सुरक्षित रखने के लिए प्रार्थना करती हैं झारखंड के लोग कार्मा पर ढोल और मांदर की थाप पर झूमते गाते हैं। करमा पर्व भी आदिवासी संस्कृति का प्रतीक है। आदिवासी समाज में कर्मा पूजा पर्व एक लोकप्रिय उत्सव है। इस अवसर पर करमा नृत्य भी किया जाता है।
करमा पूजा कब मनाया जाता है ? When karma Puja is celebrated

यह पर्व सितंबर के आसपास भादो शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को मनाया जाता है, जिसे भादों एकादशी भी कहते हैं। जनजातीय समुदाय खेती-बारी के कार्यों की समाप्ति के बाद इसे हर्षोल्लास के साथ मनाता है। इस पर्व के अनेक रूप हैं, जिन्हें विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न- भिन्न तरीकों से मनाया जाता है। जैसे-जितिया करम, दसई करम, राजी करम आदि। इस मौके पर पूजा करके आदिवासी अच्छे फसल की कामना करते हैं। साथ ही बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए प्रार्थना करती है। करमा के अवसर पर पूजा प्रक्रिया पूरा होने के बाद झारखंड के आदिवासी मूलवासी ढोल मांदर और नगाड़ा के थाप पर झूमते है एवं सामूहिक नृत्य करते हैं। यह पर्व सभी लोगों के लिए परंपरा की रक्षा के साथ-साथ मनोरंजन का भी एक अच्छा साधन है जहां पुरुष रात में पेय पदार्थों का सेवन कर पूरी रात नाचते गाते हैं और यह दृश्य देखना भी आंखों को सुकून देती है।
कर्मा पूजा कहाँ-कहाँ मनाया जाता है ? | Where Karma Festival is Celebrated
यह पर्व झारखंड के साथ-साथ अन्य राज्यों से छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश उड़ीसा एवं बंगाल के आदिवासियों द्वारा भी धूमधाम से मनाया जाता है। इनमें राजी करम सभी स्थानों पर एक ही साथ निश्चित तिथि अर्थात् भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि मुख्यतः खुखरा परगना में मनाया जाता है। राँची के पश्चिम में दसई करम तथा कसमार परगना में सोहराई करम के नाम से मनाया जाता है। राज्य के पश्चिम क्षेत्र में करम मनाने के विधि-विधान में थोड़ा-बहुत अंतर पाया जाता है, लेकिन उसका मतलब एक सा ही होता है। करम मुख्यतः सदान, मुंडा, संताल, के बीच करम देवता के रूप में आस्था के प्रतीक हैं।
कर्मा पर्व का आयोजन कैसे किया जाता है ?
कुंवारी लड़कियां ही इस पर्व को मानती हैं। यह उत्सव है जब बहनें अपने भाइयों को बचाने के लिए उपवास करती हैं, जिसे “करमैती/करमइती” कहा जाता है। इस उत्सव को मनाने के लिए करमैती 3, 5,7 या 9 दिन उपवास करती हैं और पूरी तरह से खाती हैं । पहले दिन, करमैती किसी नदी, तालाब या डोभा के किनारे से एक बांस के डालिया में “बालू” या “बाला” उठाती हैं। इसमें (कुलथी, चना, जौ, तिल, मकई, उरद, सुरगुंजा) के बीजों को डालिया में डाल दिया जाता है, जो जावा नामक छोटे छोटे पौधों के रूप में उगते हैं। करमैती जावा को 3, 5, 7 या 9 दिन तक सुबह और शाम में जावा गीत गाकर तथा करम नृत्य कर जगाती हैं।
दशमी के दिन आपको करम राजा को निमंत्रण देना होगा। उस व्यक्ति को जो उपासक है, उसे निमंत्रण दिया जाता है; वह करम वृक्ष के पूरब पक्ष में दो चंगी डाली को माला से बांधकर करम देवता को बताता है कि कल हम लोग ढोल-नगाड़े के साथ आएंगे और आपको हमारे साथ चलना होगा। निमंत्रण देते समय ले जाने वाले डलिया में सिंदूर, बेल पत्ता, सुपारी, संध्या दीया, अरवा चावल की गुंड़ी होती है। एकादशी के दिन सुबह सभी लड़कियां (करमइती) फूल तोड़ने (फुल लहराने) के लिए आसपास के जंगल में चली जाती हैं। बांस से बना हुआ बड़ा टोकरी में फूल, पत्ता, घास, धान आदि डाल देते हैं।
करम पूजा कैसे मनाया जाता है ? | how Karma festival is celebrated ?
झारखंड में होने वाले सभी प्राकृतिक पर्वों का आयोजन “पाहन” द्वारा किया जाता है। पर कई जगहों पर, करम पर्व पर ब्राह्मण भी इसकी पूजा करते हैं। पूजा शुरू होने से पहले आंगन के बीच में पाहन जंगल से करम वृक्ष की शाखा लगाई जाती है। करम शाखा लगाने पर एक अलग गीत भी गाया जाता है। करमा के वृक्ष से डाल को एक बार में कुल्हाड़ी से काटा जाता है और इसे जमीन पर गिरने नहीं दिया जाता। जंगल से लाकर घर के आंगन या अखरा के बीचों-बीच इसे लगाया जाता है। करमा पूजा के दिन खेत-खलिहान और घर में करमा के छोटे-छोटे डाल लगाए जाते हैं।

कर्मा वृक्ष रोपित होने के बाद पूजा के समय गांव के सभी वरिष्ठ नागरिक, बूढ़े-बुजुर्ग, माताएं-बेटियां, भाई-बहन सब पूजा देखने और सुनने के लिए वहाँ आते हैं। पूजा करते समय करम वृक्ष के चारों ओर आसन पर बैठती हैं। प्रकृति का आराध्य देव मानकर इसे पूजते हैं। और बहने अपने भाइयों को स्वस्थ रखना चाहते हैं। पूजा के दौरान पाहन द्वारा करमा-धरमा की कहानी भी सुनाई जाती है, जो बताती है कि कर्म पर्व मनाना कब से शुरू हुआ था। पूजा पूरी होने पर करमैती अपना भोजन छोड़ देती हैं।तब सभी करमैती और घर के सभी लोग खूब नाच गान करते हैं। नगाड़े की थाप पर मांदर भी थिरक जाता है। करमा नाचते हैं और हरसोल्लास के साथ पूजा करते हैं। पाहन द्वारा पूजा पूरी होने के बाद अगले दिन सुबह करमैती करम वृक्ष के डाल को पूरे गीत गाते और नृत्य करते हुए तालाब, पोखर या नदी में विसर्जित कर देते हैं।
कर्मा पूजा मानाने के पीछे की कहानी – कर्मा पूजा की इतिहास ( Reason Behind Celebrating Karma Puja )
कहा जाता है कि करमा-धरमा दो भाई थे। दोनों बहुत मेहनती व दयावान थे कुछ दिनों बाद करमा की शादी हो गई उसकी पत्नी अधर्मी और दूसरों को परेशान करने वाली विचार की थी। यहां तक कि धरती मां के पीड़ा से बहुत दुखी था। और इससे नाराज होकर वह घर से चला गया उसके जाते ही सभी के कर्म किस्मत भाग्य भी चला गया और वहां के लोग दुखी हो गए और धरमा से लोगों की परेशानी नहीं देखी गई और वह अपने भाई को खोजने निकल पड़ा। कुछ दूर चलने पर उसे प्यास लग गई आसपास कहीं पानी नहीं था। दूर एक नदी दिखाई दिया वहां जाने पर देखा कि उसमें पानी नहीं है। नदी ने धर्मा से कहा जबसे आपके भाई यहां से गए हैं तब से हमारा कर्म फूट गया है, यहां तक की पेड़ के सारे फल ऐसे ही बर्बाद हो जाते हैं अगर वे मिले तो उनसे कह दीजिएगा और उनसे उपाय पूछ कर बताइएगा।

धर्मा वहां से आगे बढ़ गया आगे उसे एक वृद्ध व्यक्ति मिला उन्होंने बताया कि जब से करमा यहां से गया है, उनके सर के बोझ तब तक नहीं उतरते हैं जब तक तीन चार लोग मिलकर ना उतारे। ये बात करमा से कहकर निवारण के उपाय बताना, धर्मा वहां से भी बढ़ गया। आगे उसे एक महिला मिली उसने बताई कि जब से वे गए हैं खाना बनाने के बाद बर्तन हाथ से चिपक जाते हैं, इसके लिए क्या उपाय हैं, आप करमा से पूछ कर बताना। धरमा आगे चल पड़ा, चलते चलते एक रेगिस्तान में जा पहुंचा, वहां उसने देखा कि करमा धूप गर्मी से परेशान हैं उसके शरीर पर फोड़े फुंसी पड़े हैं, और वह व्याकुल हो रहा है। धरमा से उसकी हालत देखी ना जा रही थी। उसने करमा से आग्रह किया कि हुआ घर वापस चले तो कर्मा ने कहा कि मैं उस घर कैसे जाऊं जहां पर मेरी पत्नी जमीन पर माड़ फेंक देती है तब धर्मा ने वचन दिया कि आज के बाद कोई भी महीना जमीन पर माड़ नहीं फेकेगीं, फिर दोनों भाई वापस चले तो उस सबसे पहले वो महिला मिली तो उससे करमा ने कहा कि तुमने किसी भूखे को खाना नहीं खिलाया था इसलिए तुम्हारे साथ ऐसा हुआ, आगे अंत में नदी मिला तो करमा ने कहा तुमने किसी प्यासे को साफ पानी नहीं दिया, आगे किसी को गंदा पानी मत पिलाना आगे कभी ऐसा मत करना, तुम्हारे पास कोई आए तो साफ पानी पिलाना। इसी प्रकार उसने सबको उसका कर्म बताते हुए घर आया और पोखर में करम का डाल लगाकर पूजा किया। इसके बाद पूरे इलाके में लोग फिर से खुशी से जीने लगे और फिर से खुशहाली लौट आई उसी को याद कर आज करमा पर्व मनाया जाता है।