Munda Tribe ( मुण्डा जनजाति / मुंडा जनजाति ) | All About Munda Janjati in Hindi | Jharkhand Circle

Akashdeep Kumar
Akashdeep Kumar - Student
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मुण्डा जनजाति ( Munda Tribe )  भारत की पूर्वी और मध्य भागों में आबाद है और यह एक प्रमुख आदिवासी समुदाय है। मुण्डा लोग ( munda People ) मुण्डारी भाषा बोलते हैं और उनकी सांस्कृतिक विरासत और पारंपरिक जीवनशैली महत्वपूर्ण है। इनका धर्म, संस्कृति, और समाज में विशेषता होती है और वे अपने पूजास्थल, पूजारी, और धार्मिक प्रथाओं में गहरे विश्वास रखते हैं। Jharkhand Circle  के इस पोस्ट आप पढ़गे मुण्डा जनजाति के बारे में –

मुंडा जनजाति का परिचय || Introduction to Munda Tribe 

कोल के नाम से भी इस जनजाति को जाना जाता है।  झारखण्ड की तीसरी सर्वाधिक जनसंख्या वाली जनजाति मुण्डा जनजाति है। जनजातियों की कुल जनसंख्या में इनका प्रतिशत 14.56% है। मुण्डा शब्द का सामान्य अर्थ विशिष्ट व्यक्ति तथा विशिष्ट अर्थ गाँव का राजनीतिक प्रमुख होता है। 

मुंडा जनजाति के इतिहास || History of Munda Tribe 

मुण्डा जनजाति का संबंध प्रोटो-आस्ट्रेलायड प्रजाति समूह से है। वे मुण्डारी भाषा का उपयोग करते हैं और भाषायी विशेषताओं के आधार पर उनका संबंध ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार से है। मुण्डा जनजाति अपने आप को “होड़ोको” और अपनी भाषा को “होड़ो जगर” कहती है। इस जनजाति का परंपरागत रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवास करना एक प्रमुख विशेषता रहा है। आर्यों के आक्रमण के बाद, यह जनजाति आजमगढ़ (आजमगढ़, उत्तर प्रदेश) में बस गई। वक्त के साथ, मुण्डा जनजाति का प्रवास कालंजर, गढ़चित्र, गढ़-नगरवार, गढ़-धारवाड़, गढ़-पाली, गढ़-पिपरा, मांडर पहर, बिजनागढ़, हरदिनागढ़, लकनौगढ़, नंदनगढ़ (बेतिया, बिहार), रिजगढ़ (राजगीर, बिहार) और रूईदासगढ़ में जारी रहा है। रूईदासगढ़ से यह जनजाति दक्षिण की ओर प्रवास की और ओमेडंडा (बुरमु, झारखण्ड) में बस गई, जिसका आगमन लगभग 600 ईसा पूर्व हुआ।

मुंडा जनजाति का समाज एवं संस्कृति || Society and culture of Munda tribe 

झारखण्ड में मुण्डा जनजाति का सर्वाधिक संक्रेंदण राँची जिला में है। इसके अतिरिक्त यह जनजाति गुमला, सिमडेगा, प० सिंहभूम तथा सरायकेला-खरसावां में भी निवास करती है। तमाड़ क्षेत्र में रहने वाले मुण्डाओं को तमाड़ी मुण्डा या पातर मुण्डा कहा जाता है। यह जनजाति केवल झारखण्ड में ही पायी जाती है। वर्तमान समय में संचार साधनों के विकास के कारण यह जनजाति झारखण्ड से संलग्न राज्यों में भी कमोबेश संख्या में निवास करती हैं। मुण्डाओं द्वारा निर्मित भूमि को ‘खूँटकट्टी भूमि’ कहा जाता है। इनकी प्रशासनिक व्यवस्था में खूँट का आशय परिवार से है यह जनजाति मूलतः झारखण्ड में ही पायी जाती है। सामाजिक स्तरीकरण की दृष्टि से मुण्डा समाज ठाकुर, मानकी, मुण्डा, बाबू भंडारी एवं पातर में विभक्त है। 

मुण्डा जनजाति में विवाह और विवाह के प्रकार || Marriage and types of marriage in Munda tribe 

मुण्डा जनजाति में सगोत्रीय विवाह वर्जित है।मुण्डाओं में विवाह का सर्वाधिक प्रचलित रूप आयोजित विवाह है। विवाह के अन्य रूप निम्न हैं:-

◕.राजी खुशी विवाह वर – वधु की इच्छा सर्वोपरि

◕ हरण विवाह – पसंद की लड़की का हरण करके विवाह

◕ सेवा विवाह – ससुर के घर सेवा द्वारा वधु मूल्य चुकाया जाना

◕ हठ विवाह – वधु द्वारा विवाह होने तक वर के यहाँ बलात् प्रवेश करके रहना

इस जनजाति में तलाक को साकमचारी के नाम से जाना जाता है। अधिकांश मुण्डा परिवारों में एकल परिवार पाया जाता है। मुण्डा परिवार पितृसत्तात्मक तथा पितृवंशीय होता है। इस जनजाति में वंशकुल की परंपरा को खूँट के नाम से जाना जाता है। 

मुण्डा  जनजाति में ‘ सामाजिक व्यवस्था से संबंधित विभिन्न नामकरण ‘ || ‘Different nomenclature related to social system’ in Munda tribe 

मुण्डा जनजाति में सामाजिक व्यवस्था से संबंधित विभिन्न नामकरण:-

❁´युवागृह को गितिओड़ा से सम्बोद्यित किया जाता है। 

❁ विधवा विवाह को सगाई से सम्बोद्यित किया जाता है। 

❁ वधु मूल्य को गोनोंग टका (कुरी गोनोंग ) से सम्बोद्यित किया जाता है। 

❁ ग्राम प्रधान को मुण्डा से सम्बोद्यित किया जाता है। 

❁ ग्राम पंचायत को हातू से सम्बोद्यित किया जाता है। 

❁ ग्राम पंचायत प्रधान को हातू मुण्डा से सम्बोद्यित किया जाता है। 

❁ कई गाँवों से  मिलकर बनी पंचायत को परहा/पड़हा से सम्बोद्यित किया जाता है। 

❁ विवाह को अरण्डी से सम्बोद्यित किया जाता है। 

❁ पंचायत स्थल को अखड़ा से सम्बोद्यित किया जाता है। 

❁ पड़हा पंचायत प्रधान को मानकी से सम्बोद्यित किया जाता है। 

❁ वंशकुल को खूंट से सम्बोद्यित किया जाता है। 

❁ यदि स्त्री तलाक देती है तो उसे वधु मूल्य (गोनोंग टाका) लौटाना पड़ता है।

मुंडा जनजाति में गोत्र || Gotra in Munda Tribe

इस जनजाति में गोत्र को कीली  के नाम से जाना जाता है। रिजले द्वारा मुण्डा जनजाति के 340 गोत्र बताये गये हैं। मुण्डा जनजाति के प्रमुख गोत्र एवं उनके प्रतीक :-

✿  बोदरा गोत्र का प्रतीक ” मोर ” है।

✿  सोय  गोत्र का प्रतीक ” सोल मछली ” है।

✿  होरो  गोत्र का प्रतीक ” कछुआ ” है।

✿  बिरनी  गोत्र का प्रतीक  ” छिपकली ” है।

✿  बारजो गोत्र का प्रतीक ” कुसुम फल ” है।

✿  हंसा गोत्र का प्रतीक ” हंस ” है।

✿  धान गोत्र का प्रतीक ” वेंगाधान ” है।

✿  अईद गोत्र का प्रतीक ” मछली ” है।

✿  केरकेट्टा गोत्र का प्रतीक ” पक्षी ” है।

✿  टोपनो गोत्र का प्रतीक ” लाल चींटी ” है।

✿  पूर्ती गोत्र का प्रतीक ” घड़ियाल  ” है।

✿  नाग गोत्र का प्रतीक ” सांप  ” है।

✿ भेंगरा गोत्र का प्रतीक ” घोडा  ” है।

✿  मुंडू  गोत्र का प्रतीक ” बिरनी  ” है।

सोमा सिंह मुण्डा ने मुण्डा जनजाति को 13 उपशाखाओं में विभाजित किया था, जिसमें महली मुण्डा और कंपाट मुण्डा सर्वप्रमुख थे। उनका यह कार्य जनजाति के सामाजिक संरचना को समझने में मदद करने के लिए किया गया था। “सोसो बोंगा” जो एक प्रकार की लोककथा है, यह मुण्डा जनजाति की परंपरा और विकासक्रम को प्रस्तुत करने का एक माध्यम हो सकता है। इसके माध्यम से लोग अपनी संस्कृति, साहित्य, और जीवनशैली को समझते हैं और उसे आगे बढ़ाते हैं। इस जनजाति में महिलाओं द्वारा धान की बुआई करना, महिलाओं के छप्पर पर चढ़ना तथा महिलाओं का दाह संस्कार में भाग लेने हेतु श्मशान घाट जाना वर्जित होता है।

इस जनजाति में गांव की बेटियों द्वारा सरहुल का प्रसाद ग्रहण करना वर्जित है।इस जनजाति में पुरुषों द्वारा धारण किये जाने वाले वस्त्र को बटोई या केरया तथा महिला द्वारा पहने जाने वाले वस्त्र को परेया कहा जाता है। आर्थिक उपयोगिता के आधार पर इनकी भूमि तीन प्रकार की होती है:-

◉ पंकु – हमेशा उपज देने वाली भूमि

◉ नागरा -औसत उपज वाली भूमि

◉ खिरसी – बालू युक्त भूमि

मुंडा जनजाति के पर्व / त्योहार || Festival of Munda Tribe 

मुण्डा जनजाति के लोग कृषि और पशुपालन का प्रयोग करते हैं। उन्होंने पशु पूजा के अवसर पर आयोजित किया जाने वाला त्योहार को “सोहराय” कहा जाता है। मुण्डा जनजाति के सभी अनुष्ठानों में, हड़िया और रान का प्रयोग होता है। इस जनजाति के मुख्य पर्व हैं: 

◉ सरहुल / बा पर्व (चैत माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को, जो बसंतोत्सव के रूप में मनाया जाता है),

◉ करमा (भादो माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को),

◉ सोहराई (कार्तिक अमावस्या को पशुओं के सम्मान में),

◉  रोआपुना (धान बुआई के समय), 

◉ बतौली (आषाढ़ में खेत जुताई से पूर्व छोटा सरहुल के रूप में), 

◉ बुरू पर्व ( दिसंबर माह में मनाया जाता है) ,

◉ मागे पर्व, फागु पर्व (होली के समरूप), जतरा, और जोमनवा आदि।

 मुंडा जनजाति के देवता || God’s of Munda Tribe 

इस जनजाति का सर्वप्रमुख देवता सिंगबोंगा (सूर्य का प्रतिरूप) है। सिंगबोंगा पर मुण्डाओं द्वारा सफेद रंग के फूल, सफेद भोग पदार्थ या सफेद मुर्गे की बलि चढ़ाने का प्रचलन है। इनके अन्य प्रमुख देवी-देवता हैं:-

✿ हातू बोंगा – ग्राम देवता

✿ देशाउली – गाँव की सबसे बड़ी देवी

✿ खूँटहँकार/ओड़ा बोंगा – कुल देवता

✿ इकिर बोंगा – जल देवता

✿ बुरू बोंगा – पहाड़ देवता

मुण्डा जनजाति अपने पूजास्थल को “सरना” कहती है। यहाँ, मुण्डा गाँव के धार्मिक प्रमुख को “पाहन” और उनके सहायक पूजार को “पनभरा” कहा जाता है। इस जनजाति में ग्रामीण पूजारियों को “डेहरी” कहा जाता है। मुण्डा लोग तंत्रिक और जादूगरी विद्या में विश्वास रखते हैं और झाड़-फूंक करने वाले को “देवड़ा” कहते हैं। मुण्डा समाज में शवों को जलाने और दफनाने दोनों प्रकार की प्रथाएँ मौजूद हैं, लेकिन आमतौर पर दफनाने की प्रथा अधिक प्रचलित है। जगह जहाँ मुण्डा जनजाति के पूर्वजों की हड्डियां दबी होती हैं, वहाँ “सासन” कहलाता है, और सासन में पूर्वज/मृतक की स्मृति को याद दिलाने के लिए एक “शिलाखण्ड” रखा जाता है, जिसे “सासन दिरिया हड़गड़ी” कहा जाता है।

मुंडा जनजाति के वस्त्र || Munda Tribe clothing

✿ पुरूषों के वस्त्र – बटोई ( शरीर के निचले भाग में ), कमरधनी ( युवकों द्वारा कमर में लपेटा जाता है ), भगवा ( वृद्धों द्वारा प्रयुक्त ) बरखी, पिछाड़ी, कमरा (ठंड में शीत से बचने हेतु प्रयुक्त कंबल), पगड़ी, खरपा ( चमड़े से निर्मित पैरों में पहनने हेतु प्रयुक्त ) खटनही ( काठ से निर्मित पैरों पहनने हेतु प्रयुक्त )

✿ महिलाओं के वस्त्र – परिया ( साड़ी की तरह ), लहंगा, खड़िया ( किशोरियों द्वारा प्रयोग )

मुंडा जनजाति के खान-पान || Food of Munda Tribe

मुण्डा जनजाति का प्रमुख भोजन दाल-भात है। आर्थिक रूप से कमजोर मुण्डाओं द्वारा गोंदली, मडुआ और मकई का प्रयोग खाद्य पदार्थ के रूप में किया जाता है। ये लोग मांस, हड़िया व रानू का भी सेवन करते हैं।

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