आदिवासी समाज की वीरांगनाएं
झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र में स्थित बरहेट प्रखंड के भोगनाडीह गांव में फूलो मुर्मू और झानो मुर्मू का जन्म 1832 के आसपास हुआ था। उनका परिवार संथाल आदिवासी समुदाय से था। उनके पिता का नाम चुन्नी मांझी था। बचपन से ही इन बहनों ने अपने भाई सिद्धू-कान्हू के साथ अंग्रेजों और सूदखोरों के खिलाफ संघर्ष में भाग लिया।
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फूलो और झानो ने अंग्रेजों और साहूकारों के अन्याय के खिलाफ आदिवासी समाज को संगठित किया। उनके नेतृत्व में आदिवासी महिलाओं ने अपनी पारंपरिक कुल्हाड़ियों के सहारे अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
21 अंग्रेज सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया
1855 में, संथाल विद्रोह के दौरान, फूलो-झानो ने अपनी बहादुरी से अंग्रेजों को हिला कर रख दिया। एक रात, गुप्त रूप से दुश्मनों के शिविर में घुसकर उन्होंने अपनी कुल्हाड़ी से 21 अंग्रेज सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। इस घटना ने न केवल उनके साथियों को प्रेरित किया, बल्कि अंग्रेजों के बीच भी खौफ पैदा कर दिया।
संथाल विद्रोह और महिलाओं की भूमिका
भोगनाडीह से शुरू हुआ यह विद्रोह पूरे संथाल परगना में फैल गया। फूलो-झानो ने महिला समूहों का गठन कर उन्हें संघर्ष के लिए तैयार किया। वे संदेशवाहक भी थीं, जो जंगलों, पहाड़ियों और नदियों को पार कर संथाल क्रांति का संदेश दूर-दूर तक पहुंचाती थीं। इस विद्रोह का मुख्य उद्देश्य जल, जंगल और जमीन की रक्षा करना था। संथाल परगना के आदिवासियों की ज़मीनें अंग्रेजों और साहूकारों द्वारा छीनी जा रही थीं। इसके खिलाफ संथाल आदिवासी समाज ने एकजुट होकर संघर्ष किया।
अंतिम बलिदान
फूलो-झानो की वीरता से घबराए अंग्रेजों ने अंततः उन्हें पकड़ लिया। भोगनाडीह के आम के पेड़ पर उन्हें फांसी दे दी गई। यह घटना झारखंड के इतिहास का वह काला दिन था, जिसने संथाल विद्रोह की लौ को और भी प्रज्वलित कर दिया।
अमर बलिदान
संथाल आदिवासी समाज में आज भी फूलो-झानो की गाथाएं गाई जाती हैं। उनके बलिदान को आदिवासी गीतों और कविताओं में संजोकर रखा गया है। एक संथाली कविता में उनके बलिदान का उल्लेख इस प्रकार है:
“नो आई एम डी, तीर तलवार फूलों जनों आम दो तीर तलवार।”
अर्थ : “21 अंग्रेज सिपाहियों को मारकर तुम दोनों अमर हो गईं।”
फूलो-झानो के प्रति सम्मान
आज, झारखंड की वीर भूमि में इन दोनों बहनों को शत-शत नमन किया जाता है। उनके बलिदान ने यह साबित कर दिया कि महिलाएं भी किसी से कम नहीं। वे न केवल अपनी रक्षा कर सकती हैं, बल्कि समाज के लिए भी बड़ा योगदान दे सकती हैं।
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फूलो-झानो की इस प्रेरणादायक कहानी ने झारखंड के इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ी है। ऐसे और भी प्रेरक और ऐतिहासिक किस्सों के लिए Jharkhandcircle.in पर जुड़े रहें। नमन है वीरांगनाओं को, जिन्होंने अपने बलिदान से इतिहास रच दिया।