भारत के पहले स्वतंत्रता सेनानी | Tilka Manjhi (तिलका मांझी) Biography | First Freedom Fighter of India | Jharkhand Circle

Akashdeep Kumar
Akashdeep Kumar - Student
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Tilka Manjhi (तिलका मांझी) Biography : भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई नायक हुए, लेकिन तिलका मांझी (Tilka Manjhi) का नाम सबसे अलग और महत्वपूर्ण है। वह पहले ऐसे आदिवासी नेता थे जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई और ब्रिटिश साम्राज्य के अन्यायपूर्ण शोषण के खिलाफ लड़ाई लड़ी। तिलका मांझी न केवल एक क्रांतिकारी नेता थे, बल्कि वे उस आदिवासी समुदाय के प्रतीक भी बने, जो हमेशा अपनी भूमि और अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्षरत रहा। आइए जानें उनके जीवन, संघर्ष और बलिदान की प्रेरणादायक कहानी, जो आज भी हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा देती है।

तिलका मांझी का प्रारंभिक जीवन | Tilka Manjhi’s early life

तिलका मांझी (Tilka Manjhi) का जन्म 11 फरवरी 1750 को वर्तमान बिहार के सुल्तानगंज में तिलकपुर गांव में हुआ था। उनका असली नाम जबरा पहाड़िया था। वे संथाल जनजाति से संबंधित थे। “तिलका” नाम उन्हें उनके गुस्से वाले स्वभाव के कारण दिया गया, जिसका अर्थ पहाड़िया भाषा में “लाल आंखों वाला व्यक्ति” होता है। उनके पिता सुंदर मुर्मू एक साधारण व्यक्ति थे, लेकिन उनका परिवार आदिवासी संस्कृति और परंपराओं का पालन करता था। तिलका मांझी ने बचपन से ही अंग्रेजों और जमींदारों के अत्याचारों को देखा और महसूस किया। यह अत्याचार ही उनकी विद्रोही प्रवृत्ति का कारण बना।

अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत | Beginning of rebellion against the British

अंग्रेजी शासन ने 1770 के भीषण अकाल के बाद भारतीयों का और अधिक शोषण करना शुरू कर दिया। अंग्रेजों ने जमींदारों के माध्यम से आदिवासी समुदाय की जमीन छीननी शुरू कर दी और जंगलों को नष्ट करना शुरू किया। आदिवासी समुदाय, जो पूरी तरह से जंगलों पर निर्भर था, धीरे-धीरे अपनी आजीविका खोने लगा। तिलका मांझी ने इन अन्यायपूर्ण स्थितियों के खिलाफ आवाज उठाई और अपने समुदाय को संगठित करना शुरू किया। उन्होंने अपने साथियों को संगठित कर 1784 में अंग्रेजों के खिलाफ पहला सशस्त्र विद्रोह किया। यह विद्रोह भारत के पहले जन-विद्रोह के रूप में जाना गया।

भागलपुर और क्लीवलैंड पर हमला | Attack on Bhagalpur and Qlivland

तिलका मांझी के नेतृत्व में विद्रोही आदिवासियों ने भागलपुर के पास बंचरी जोर नामक स्थान पर अपना पहला संगठित संघर्ष शुरू किया। उनकी सेना में संथाल और अन्य आदिवासी समुदायों के लोग शामिल थे। 1784 में, तिलका मांझी ने अंग्रेजों के कमिश्नर लेफ्टिनेंट ऑगस्टस क्लीवलैंड पर हमला किया। उन्होंने एक गुलेल के माध्यम से क्लीवलैंड को गंभीर रूप से घायल कर दिया। यह घटना अंग्रेजी सेना के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई। तिलका मांझी और उनकी सेना ने अंग्रेजों की कई टुकड़ियों को हराया और उनके खजानों को लूटकर गरीबों में बांटा।

गुरिल्ला युद्ध में महारथ | Master of guerrilla warfare

तिलका मांझी की सेना ने गुरिल्ला युद्ध की तकनीक अपनाई। वे जंगलों में छिपकर अंग्रेजी सेना पर हमला करते थे। इस तकनीक ने अंग्रेजों को कई बार पराजित किया। लेकिन संसाधनों की कमी और अंग्रेजों की भारी सेना के सामने यह संघर्ष लंबे समय तक जारी नहीं रह सका। 1784 में, अंग्रेजों ने तिलापुर के जंगल को घेर लिया, जहां से तिलका मांझी अपने अभियान चला रहे थे। कई हफ्तों तक संघर्ष जारी रहा, लेकिन अंत में उन्हें धोखे से पकड़ लिया गया।

तिलका मांझी का बलिदान | Tilka Manjhi’s sacrifice

1784 में गिरफ्तारी के बाद, तिलका मांझी को भागलपुर लाया गया। उन्हें घोड़े की पूंछ से बांधकर सड़कों पर घुमाया गया और उनके साथ बर्बरता की गई। 13 जनवरी 1785 को, अंग्रेजों ने उन्हें भागलपुर में एक बरगद के पेड़ पर फांसी दे दी। इस तरह तिलका मांझी ने अपनी मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया।

तिलका मांझी का प्रभाव | Tilka Manjhi’s influence

तिलका मांझी का संघर्ष और बलिदान आदिवासी समुदाय के लिए एक प्रेरणा बन गया। उनके नेतृत्व ने अन्य आदिवासी विद्रोहों, जैसे 1855-1856 के संथाल हूल को प्रोत्साहित किया। उन्होंने यह साबित किया कि चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों, अगर इरादे मजबूत हों, तो अन्याय के खिलाफ लड़ाई जीती जा सकती है।

तिलका मांझी को श्रद्धांजलि | Tribute to Tilka Manjhi

आज भी तिलका मांझी का नाम आदिवासी संस्कृति और इतिहास में सम्मान के साथ लिया जाता है। भागलपुर विश्वविद्यालय का नाम उनके नाम पर रखा गया है, जिसे अब तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय कहा जाता है।

झारखंड और बिहार में लोग उन्हें “माझी बाबा” के नाम से पूजते हैं। उनकी स्मृति हमें यह सिखाती है कि अन्याय के खिलाफ लड़ाई में हमेशा डटे रहना चाहिए। तिलका मांझी का जीवन हमें यह सिखाता है कि हमें अपने अधिकारों के लिए निडर होकर खड़ा होना चाहिए। उनके बलिदान को याद करते हुए हमें उनके संघर्षों से प्रेरणा लेनी चाहिए।

निष्कर्ष | Conclusion

तिलका मांझी ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जो योगदान दिया, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनका संघर्ष न केवल आदिवासी समुदाय के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि स्वतंत्रता और अधिकारों की लड़ाई में कभी हार नहीं माननी चाहिए। आइए, हम सभी उनके बलिदान को याद करें और उनकी विरासत को आगे बढ़ाएं।

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तिलका मांझी से जुड़े 10 महत्वपूर्ण प्रश्न | Top 10 Important Questions related to Tilka Manjhi

Q. तिलका मांझी का जन्म कब और कहां हुआ था?
उत्तर: तिलका मांझी का जन्म 11 फरवरी 1750 को बिहार के सुल्तानगंज के तिलकपुर गांव में हुआ था।
Q. तिलका मांझी का असली नाम क्या था?
उत्तर: तिलका मांझी का असली नाम जबरा पहाड़िया था।
Q.तिलका मांझी को ‘तिलका’ नाम क्यों दिया गया?
उत्तर: उनके गुस्से वाले स्वभाव के कारण उन्हें तिलका नाम दिया गया, जिसका अर्थ है “लाल आंखों वाला व्यक्ति।”
Q. तिलका मांझी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ पहला विद्रोह कब और किसके खिलाफ किया?
उत्तर:
तिलका मांझी ने 1784 में अंग्रेजों के खिलाफ पहला सशस्त्र विद्रोह किया।
Q. अंग्रेजी कमिश्नर पर तिलका मांझी ने किस प्रकार से हमला किया था?
उत्तर:
तिलका मांझी ने गुलेल का उपयोग करके अंग्रेजी कमिश्नर लेफ्टिनेंट ऑगस्टस क्लीवलैंड पर हमला किया।
Q. तिलका मांझी किस समुदाय से संबंधित थे?
उत्तर:
तिलका मांझी संथाल समुदाय से संबंधित थे।
Q. तिलका मांझी की सेना किस प्रकार के युद्ध में निपुण थी?
उत्तर:
उनकी सेना गुरिल्ला युद्ध में निपुण थी।
Q. अंग्रेजों ने तिलका मांझी को कब और कहां फांसी दी?
उत्तर:
अंग्रेजों ने 13 जनवरी 1785 को भागलपुर में एक बरगद के पेड़ पर तिलका मांझी को फांसी दी।
Q. तिलका मांझी का विद्रोह भारत के इतिहास में किस रूप में प्रसिद्ध है?
उत्तर:
तिलका मांझी का विद्रोह भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ पहला जन विद्रोह माना जाता है।
Q. तिलका मांझी की स्मृति में कौन-सा विश्वविद्यालय स्थापित किया गया है?
उत्तर:
तिलका मांझी की स्मृति में तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है।

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