ललित मोहन राय: झारखंड के प्रसिद्ध चित्रकार और कलाकार | Lalit Mohan Roy

Akashdeep Kumar
Akashdeep Kumar - Student
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Jharkhand’s Lalit Mohan Roy: झारखंड की माटी हमेशा से कला, संस्कृति, और परंपरा की गवाही देती आई है। इस धरती ने कई महान कलाकारों को जन्म दिया, और उन्हीं में से एक नाम है ललित मोहन राय। ललित मोहन राय न केवल एक प्रसिद्ध चित्रकार थे, बल्कि उन्होंने अपनी कला के माध्यम से संथाल परगना की संस्कृति और परंपरा को एक नई पहचान दिलाई। उनका मुख्य चित्रांकन आदिवासी जीवन, प्रकृति, और जनजातीय समाज की विविधता पर आधारित था। इस लेख में हम उनके जीवन, उपलब्धियों, और झारखंड के कला और संस्कृति में उनके योगदान के बारे में विस्तार से जानेंगे।

प्रारंभिक जीवन

ललित मोहन राय का जन्म 1945 में दुमका (झारखंड) में हुआ था। उनका बचपन झारखंड की प्राकृतिक सुंदरता और संथाल परगना की समृद्ध परंपराओं के बीच बीता। उनकी शिक्षा नेशनल हाई स्कूल, दुमका और एसपी कॉलेज, दुमका से पूरी हुई। हालांकि उन्हें चित्रकला का कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं मिला, परंतु उनका जुनून, मेहनत, और प्रकृति से प्रेम उन्हें एक महान कलाकार बनाने के लिए काफी था।

चित्रकला के क्षेत्र में करियर और योगदान

ललित मोहन राय ने अपनी कला के माध्यम से संथाल परगना की माटी, जनजातीय जीवन, और प्रकृति की सुंदरता को जीवंत किया। उनकी पेंटिंग्स और मूर्तियां झारखंड की संस्कृति और परंपराओं की झलक देती हैं।उनकी रचनाओं में शामिल हैं:
● कागज पर काम
● प्लास्टर ऑफ पेरिस से मूर्तियां
● लकड़ी की मूर्तियां
● मिट्टी की मूर्तियां
उनकी कलाकृतियों को दुमका संग्रहालय, संथाल नृत्य कला केंद्र, भागलपुर संग्राहलय, और पटना संग्रहालय जैसे स्थानों पर संग्रहित किया गया है।

प्रदर्शनियां और पेंटिंग का सफर

ललित मोहन राय की पहली पेंटिंग प्रदर्शनी 1968 में दुमका में आयोजित हुई थी। इसके बाद उनकी दर्जनों पेंटिंग्स विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी में प्रदर्शित की गईं। उनकी हर रचना में झारखंड की मिट्टी और जनजातीय समाज की सादगी साफ झलकती है। उन्होंने अपनी कला से न केवल झारखंड बल्कि पूरे देश और विदेश में भी संथाल परगना की कला और संस्कृति को पहचान दिलाई।

कला और शिक्षा का संगम

ललित मोहन राय एक उत्कृष्ट चित्रकार के साथ-साथ एक सच्चे शिक्षक भी थे। उन्होंने झारखंड के नवोदित कलाकारों को प्रेरित करने के लिए दुमका में स्कूल ऑफ आर्ट की स्थापना की। वह इसके संस्थापक और निदेशक रहे। यहां पर उन्होंने कला के नए आयामों को सिखाने और झारखंड की कला को संरक्षित करने का काम किया।

प्राप्त पुरस्कार और सम्मान

ललित मोहन राय के योगदान को कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया। इनमें शामिल हैं:
कलाश्री पुरस्कार (1978): यह पुरस्कार उन्हें बिहार सरकार ने प्रदान किया।
प्राइड ऑफ झारखंड (2002): झारखंड सरकार द्वारा कला और संस्कृति के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए यह सम्मान।
राजकीय सांस्कृतिक सम्मान: झारखंड सरकार द्वारा कला और संस्कृति के उत्थान के लिए दिया गया।
दर्जनों प्रशस्ति पत्र और सम्मान। उनका योगदान झारखंड की कला और संस्कृति के इतिहास में हमेशा अमिट रहेगा।

झारखंड की संस्कृति और परंपरा का प्रतिबिंब

ललित मोहन राय की कला झारखंड की समृद्ध संस्कृति, परंपरा, और आदिवासी जीवन का सजीव चित्रण करती है। उन्होंने अपने चित्रों में झारखंड की प्राकृतिक सुंदरता और जनजातीय समाज की विविधता को उजागर किया। उनकी हर रचना झारखंड के हर कोने में बसे सौंदर्य को महसूस कराती है।

जीवन का अंतिम अध्याय

14 जुलाई 2018 को, झारखंड के इस महान चित्रकार का निधन हो गया। उनका जाना कला जगत के लिए एक बड़ी क्षति थी। हालांकि, उनकी कलाकृतियां और उनके द्वारा स्थापित स्कूल ऑफ आर्ट आज भी उनके योगदान की गवाही देते हैं।

ललित मोहन राय से प्रेरणा

ललित मोहन राय की कला और उनका जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने दिखाया कि बिना औपचारिक प्रशिक्षण के भी अपनी मेहनत और जुनून से ऊंचाइयों को छुआ जा सकता है। उनकी कला झारखंड की माटी, परंपरा, और जनजातीय समाज की कहानियों को दुनियाभर में पहुंचाने का माध्यम बनी।

निष्कर्ष

ललित मोहन राय का जीवन और उनकी कलाकृतियां झारखंड के लिए गौरव की बात हैं। वह एक महान चित्रकार, शिक्षक, और कलाकार थे, जिन्होंने अपनी कला के माध्यम से झारखंड की पहचान को विश्व स्तर पर स्थापित किया।
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झारखंड की माटी के ऐसे महान कलाकार को हमारा शत-शत नमन।

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