Jatra Bagat/Jatra Oraon: झारखंड की धरती ने हमेशा से ही कई महानायक और क्रांतिकारी पैदा किए हैं, जिन्होंने न केवल अपनी भूमि की संस्कृति और अस्मिता की रक्षा की, बल्कि अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन्हीं महानायकों में से एक हैं जतरा भगत। उनका जीवन, संघर्ष, और योगदान आदिवासी समाज और देश की स्वतंत्रता के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।
जतरा भगत का प्रारंभिक जीवन | Jatra Bhagat’s early life
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जतरा भगत का जन्म सितंबर 1888 में झारखंड के गुमला जिले के बिशुनपुर थाना अंतर्गत चिंगरी नवाटोली गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम कोदल उरांव और मां का नाम लिबरी था। जतरा भगत का बचपन साधारण और संघर्षपूर्ण था। उनका परिवार अत्यंत गरीब था, और जीवन-यापन के लिए अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था।
बचपन से ही जतरा भगत का स्वभाव अपने साथियों से भिन्न था। वे शांत स्वभाव के थे और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का अहसास छोटी उम्र में ही करने लगे थे। किशोरावस्था में उन्होंने मति झाड़-फूंक की विधा सीखने के लिए निकटवर्ती हेस्का गांव जाना शुरू किया।
आत्मज्ञान की ओर यात्रा | Journey towards enlightenment
जतरा भगत की जीवन दिशा बदलने वाली घटना उस समय हुई जब उन्होंने एक पक्षी के अंडे को गिराकर तोड़ दिया। इस घटना ने उन्हें गहरा आत्मज्ञान दिया और उन्होंने जीवहत्या न करने का संकल्प लिया। यही से उनके जीवन में सामाजिक और आध्यात्मिक जागृति की शुरुआत हुई। धीरे-धीरे उनके विचारों ने एक नया स्वरूप लिया, जो आगे चलकर टाना पंथ के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
टाना भगत आंदोलन की नींव | Foundation of Tana Bhagat Movement
19वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में छोटानागपुर क्षेत्र में अंग्रेजों और जमींदारों के अत्याचार से त्रस्त आदिवासी समुदायों के बीच असंतोष बढ़ रहा था। बिरसा मुंडा के नेतृत्व में हुए उलगुलान आंदोलन ने आदिवासी समाज को अपनी अस्मिता और अधिकारों के लिए संघर्ष करने का मार्ग दिखाया। उसी प्रेरणा से जतरा भगत ने 1912-14 के बीच टाना पंथ की शुरुआत की।
टाना पंथ का उद्देश्य | Purpose of Tana Panth
- मांसाहार का त्याग
- भूत-प्रेत में विश्वास न करना
- पशु बलि रोकना
- तुलसी चौरा की स्थापना और गौ सेवा
- प्रेम और अहिंसा का संदेश फैलाना
जतरा भगत ने आदिवासी समाज को संगठित करने और उन्हें अंग्रेजों के शोषण के खिलाफ खड़ा करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने लोगों को यह समझाया कि अंग्रेज, महाजन और जमींदार दिकू (बाहरी लोग) हैं, जो आदिवासियों का शोषण कर रहे हैं।
अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष | Struggle against the British
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जतरा भगत ने अहिंसा का मार्ग अपनाते हुए ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कई आंदोलन किए। उन्होंने ब्रिटिश कर और टैक्स भरने से इनकार कर दिया और लोगों को संगठित किया। उनकी विचारधारा गांधी जी के सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों से मेल खाती थी।
1916 में, ब्रिटिश सरकार ने जतरा भगत और उनके अनुयायियों को उकसाने वाले विचारों के प्रचार का दोषी मानते हुए गिरफ्तार कर लिया। उन्हें एक साल की सजा सुनाई गई। जेल से बाहर आने के कुछ महीने बाद, 1915 में जतरा भगत का निधन हो गया।
समाज सुधारक के रूप में योगदान | Contribution as a social Reformer
जतरा भगत ने न केवल अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया, बल्कि समाज में सुधार लाने के लिए भी कई कार्य किए। उन्होंने आदिवासी समाज को जागरूक करने और उनकी सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए काम किया। उन्होंने:
- मांस और शराब के सेवन से बचने की सलाह दी।
- मंदिर निर्माण और तुलसी पूजा को बढ़ावा दिया।
- शिक्षा और स्वच्छता पर जोर दिया।
- भूत-प्रेत के अंधविश्वासों को खत्म करने की पहल की।
गांधी जी और टाना भगत आंदोलन | Gandhiji and Tana Bhagat Movement
1921 में, जब गांधी जी ने विदेशी कपड़ों के बहिष्कार का आह्वान किया, तब टाना भगत समुदाय ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। कई टाना भगत रांची से पैदल चलकर गया की कांग्रेस बैठक में शामिल हुए और राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा बने।
टाना भगतों ने:
- खादी पहनने को बढ़ावा दिया।
- अंग्रेजों को मालगुजारी देने से इनकार किया।
- साइमन कमीशन के विरोध में भाग लिया।
जतरा भगत की विरासत और सम्मान | Jatra Bhagat’s legacy and Honor
जतरा भगत का योगदान आज भी आदिवासी समाज के लिए प्रेरणा स्रोत है। उनकी स्मृति में झारखंड में कई स्मारक, पार्क और मेले आयोजित किए जाते हैं। टाना भगत समुदाय आज भी राष्ट्रीय ध्वज को आदिवासी संस्कृति का हिस्सा मानता है। उनका जीवन आदिवासी समाज के संघर्ष, जागरूकता और आत्मसम्मान का प्रतीक है।
निष्कर्ष | Conclusion
जतरा भगत का जीवन हमें सिखाता है कि समाज सुधार और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कभी भी व्यर्थ नहीं जाता। उनकी निष्ठा, त्याग और आदर्श आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा हैं।
महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर
- जतरा भगत का जन्म कब और कहां हुआ था?
- सितंबर 1888 में, गुमला जिले के चिंगरी नवाटोली गांव में।
- जतरा भगत के माता-पिता का नाम क्या था?
- पिता का नाम कोदल उरांव और मां का नाम लिबरी था।
- जतरा भगत ने कौन सा आंदोलन शुरू किया?
- उन्होंने टाना पंथ आंदोलन शुरू किया।
- टाना पंथ का मुख्य उद्देश्य क्या था?
- अहिंसा, मांसाहार का त्याग, भूत-प्रेत में विश्वास न करना, और गौ सेवा।
- जतरा भगत को अंग्रेजों ने कब गिरफ्तार किया?
- 1916 में।
- जतरा भगत का निधन कब हुआ?
- 1915 में।
- टाना भगत किसके विचारों से प्रभावित थे?
- महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों से।
- जतरा भगत ने स्वतंत्रता संग्राम में कौन-कौन से कदम उठाए?
- विदेशी कपड़ों का बहिष्कार, मालगुजारी न देना, और साइमन कमीशन का विरोध।
- जतरा भगत का समाज सुधार में योगदान क्या था?
- मांस और शराब का त्याग, शिक्षा और स्वच्छता का प्रचार, और अंधविश्वास को खत्म करना।
- जतरा भगत की स्मृति में क्या किया जाता है?
- झारखंड में स्मारक, मेले और पार्क आयोजित किए जाते हैं।
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