Baba Baidyanath Dham इतना famous क्यों है ? जानिए कहानी और इतिहास | Jharkhand Circle

Akashdeep Kumar
Akashdeep Kumar - Student
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बाबा बैद्यनाथ धाम ( Baba Baidyanath Dham ), भारत के धार्मिक पर्यटन का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। इस पवित्र स्थल पर हम बाबा बैद्यनाथ के प्रसिद्ध मंदिर को समर्पित हैं, जो भगवान शिव के प्रतीक माना जाता है। Jharkhand Circle  के इस पोस्ट में आप पढ़ने जा रहे है – बाबा बैद्यनाथ धाम के बारे में | बाबा बैद्यनाथ धाम झारखंड के देवघर  जिला में पड़ता है | देवघर की चौहद्दी की:बात करे तो पूरब में दुमका, पश्चिम में गिरिडीह, उत्तर में बिहार, दक्षिण में जामताड़ा स्थित है | आज के इस पोस्ट में, आप बाबा बैद्यनाथ के प्रसिद्ध स्थल के बारे में हर जानकारी और उपयोगी टिप्स मिलेंगे जो आपके धार्मिक और पर्यटन संबंधित अनुभव को और भी सार्थक बनाएगा।

बाबा बैद्यनाथ धाम का परिचय – Baba Baidyanath Dham

बाबा बैद्यनाथ धाम, जिसे बैजनाथ धाम के नाम से भी जाना जाता है, धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भारत का एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है। यह धाम देश-विदेश के भक्तों के बीच अपनी विशेष प्रतिष्ठा रखता है। पूरे श्रावण महीने में, लाखों भक्त काँवर लेकर यहाँ आते हैं और बाबा बैद्यनाथ पर जल चढ़ाते हैं। यह जलाभिषेक 105 किलोमीटर की कठिन पदयात्रा के बाद संपन्न होता है, जो इस धार्मिक अनुष्ठान की महत्ता को और भी बढ़ा देता है। बाबा बैद्यनाथ धाम का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व समान रूप से प्रभावशाली है। यह धाम झारखंड राज्य के संताल परगना क्षेत्र के देवघर जिले में स्थित है, जिसे शांति और भाईचारे का प्रतीक माना जाता है। बाबा बैद्यनाथ भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं, और वैदिक काल में इसे ‘महादेव की भूमि’ कहा जाता था।

इस पवित्र स्थल का उल्लेख शतपथ ब्राह्मण में भी मिलता है, जो यह प्रमाणित करता है कि जब आर्य संस्कृति का पूर्व की ओर विस्तार हुआ, तो आर्य और व्रात्य संस्कृतियों का मिलन हुआ। इस मिलन की परिणति वैदिक अनुष्ठानों में ‘ब्रातस्तोमयज्ञ’ के समावेश और द्विदेव ब्रह्मा और विष्णु के स्थान पर त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश की परिकल्पना में हुई। इसके परिणामस्वरूप आर्य और व्रात्य संस्कृतियाँ दूध-पानी की तरह एकाकार हो गईं, और यह समन्वित संस्कृति बाबा बैद्यनाथ धाम में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

बाबा बैद्यनाथ का धाम काशी के बाबा विश्वनाथ और काठमांडू, नेपाल के पशुपतिनाथ महादेव के साथ मिलकर एक धार्मिक त्रिभुज का निर्माण करता है। यह त्रिभुज व्रात्य संस्कृति के क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है, जहां महादेव की परम उपासना की जाती थी। बाबा बैद्यनाथ धाम के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व ने इसे श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए एक अनिवार्य स्थल बना दिया है। यह धाम न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा का अद्वितीय प्रतीक भी है।

बाबा बैद्यनाथ धाम के बारे में – About Baba Baidyanath Dham

बाबा बैद्यनाथ धाम एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जो भारतीय धर्म और परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग का उल्लेख धार्मिक ग्रंथों में मिलता है, जिसे रावण ने स्थापित किया था। मंदिर का वर्तमान स्वरूप 1514-1515 ईसा पूर्व में गिद्धौर राजवंश के राजा पूरणमल द्वारा निर्मित किया गया था। इस मंदिर का शिखर चंद्रमौलेश्वर सिंह द्वारा अपनी शक्तिशाली व्यक्तित्व से सजाया गया था, जो इस क्षेत्र के राजा थे। बाबा बैद्यनाथ धाम भारतीय परंपरा में 51 शक्तिपीठों में से एक है, जिसे शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। यहाँ पर ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ एक साथ हैं, जिसे यहाँ के धार्मिक माहात्म्य और पवित्रता के साथ संबद्ध किया जाता है। मंदिर के प्रांगण में कुल 22 मंदिर हैं, जो इस स्थल को धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से और भी महत्वपूर्ण बनाते हैं। यहाँ पर मंदिर के शिखर पर पंचशूल के स्थान पर एक पंचशूल स्थापित है, जो इसे देश का एकमात्र ऐसा शिव मंदिर बनाता है जिस पर ऐसी विशेषता है। पुराणों में इस मंदिर को अंतिम संस्कार हेतु उपयुक्त स्थान माना गया है।

बाबा बैद्यनाथ धाम का इतिहास – History of Baba Baidyanath Dham

बाबा बैद्यनाथ धाम का इतिहास प्राचीन और समृद्ध है, जिसकी जड़ें सदियों पुरानी हैं। इतिहासकारों का मानना है कि वर्तमान मंदिर का निर्माण 1514-1515 ई. के बीच महाराजा पूरनमल ने कराया था। हालांकि, इस मंदिर का महत्व और प्रसिद्धि आठवीं शताब्दी, गुप्तकाल के अंतिम दिनों में भी थी, जो संकेत देता है कि इस मंदिर का कालखंड इससे भी पुराना है।

जब मुगलों का शासन शुरू हुआ, तो इस क्षेत्र को राजा मान सिंह के अधीन कर दिया गया। मान सिंह इन क्षेत्रों के प्रशासक थे और उन्होंने गिद्धौर साम्राज्य को अपने नियंत्रण में ले लिया था। मान सिंह के भाई भान सिंह ने गिद्धौर के राजा पूरनमल सिंह की पुत्रियों से विवाह कर लिया था। मान सिंह को देवघर के इस प्रसिद्ध मंदिर के प्रति गहरी आस्था थी और उन्होंने यहाँ पर एक बड़ा तालाब खुदवाया, जिसे आज मानसरोवर के नाम से जाना जाता है।

मुगलकाल में भी इस मंदिर की शानोशौकत और बढ़ गई थी। इसी समय के दौरान लिखी गई मुगलकालीन कृति खुलासती-ए-तवारीख (1695-1699) में इस मंदिर का उल्लेख मिलता है। इस ग्रंथ में बताया गया है कि मंदिर के पुजारी रघुनाथ ओझा के अनुरोध पर गिद्धौर के राजा पूरनमल ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। इस तरह, मुगलकाल के दौरान भी मंदिर को संरक्षित और संवर्धित करने के प्रयास जारी रहे।

18वीं शताब्दी में गिद्धौर के राजा को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इस समय मुगल शासन अपने अस्त होने की ओर अग्रसर था। इसी दौरान राजा को वीरभूम के नवाब से लड़ाई करनी पड़ी, जो मुगल शासन के अधीन था। इस संघर्ष के बाद कुछ समय के लिए वीरभूम के नवाब ने बाबाधाम की कमान अपने अधीन कर ली। इसके बाद बाबाधाम अंग्रेजी शासन के अधीन आ गया।

1757 में प्लासी के युद्ध के बाद देश की तकदीर बदल गई और ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों का ध्यान इस मंदिर की ओर गया। अंग्रेज प्रशासक कीटिंग, जो वीरभूम के पहले कलेक्टर थे, ने मंदिर की देखभाल के लिए एक व्यक्ति को भेजा। कीटिंग ने खुद भी मंदिर के प्रशासन में गहरी रुचि ली। 1788 में कीटिंग के आदेश पर मिस्टर हेसीलरिंग पहले व्यक्ति थे जिन्होंने बाबा बैजनाथ की यात्रा की थी। बाद में कीटिंग खुद भी आए और बाबा बैजनाथ के दर्शन किए।

19वीं सदी में मंदिर का आधिपत्य फिर से गिद्धौर के राजा के हाथों में आ गया। गिद्धौर के राजा चंद्रमौलेश्वर सिंह ने मंदिर के गुंबद पर स्वर्णकलश स्थापित कराया, जो आज भी मंदिर की शोभा बढ़ा रहा है। इस ऐतिहासिक मंदिर ने समय के साथ कई परिवर्तन देखे, लेकिन इसकी पवित्रता और धार्मिक महत्व हमेशा बरकरार रहे।

इस प्रकार, बाबा बैद्यनाथ धाम का इतिहास विभिन्न राजवंशों और युगों की कहानियों से भरा हुआ है। इस पवित्र स्थल का धार्मिक महत्व और ऐतिहासिक धरोहर इसे एक अद्वितीय स्थल बनाते हैं, जहाँ भक्तगण और पर्यटक सदियों से आस्था और श्रद्धा के साथ आते रहे हैं।

बैद्यनाथ धाम की कहानी || Story of Baba Baidyanath Dham

देवघर में स्थित बैद्यनाथ धाम को 10वां ज्योतिर्लिंग माना जाता है, जो देवों के देव महादेव शिव का एक महत्वपूर्ण स्थल है। शास्त्रों और मान्यताओं के अनुसार, यह मंदिर शिव और शक्ति के मिलन का स्थान है। विश्व में यह एकमात्र ऐसा शिव मंदिर है जहां शिव और शक्ति दोनों एकसाथ विराजमान हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां माता सती का हृदय कट कर गिरा था, इसलिए इसे हृदय पीठ भी कहा जाता है।

पौराणिक कथा के अनुसार, राजा दक्ष के महायज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया था, जिससे माता सती बहुत आहत हुईं। उन्होंने इसे अपना अपमान समझते हुए, खुद को अग्निकुंड में समर्पित कर दिया। इस घटना से भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और सती के मृत शरीर को अपने कंधे पर लेकर तांडव करने लगे। शिव के इस प्रलयंकारी तांडव से पूरी सृष्टि खतरे में पड़ गई। तब भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। जहाँ-जहाँ ये टुकड़े गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ कहलाए। ऐसा माना जाता है कि देवघर के बैद्यनाथ धाम में माता का हृदय गिरा था, इसलिए यह स्थान भी एक शक्तिपीठ है।

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का महत्व ? | Importance of Baidyanath Dham Jyotirlinga

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व अत्यधिक है। यह मंदिर प्राचीन काल से ही श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र रहा है। माना जाता है कि अयोध्या के राजा राम के समय से ही भक्त इस मंदिर में पूजा करने आते रहे हैं। इस मंदिर की छत पर तीन सोने के बर्तन रखे हुए हैं, जो आकार में बढ़ते हुए क्रम में सजाए गए हैं। ये बर्तन गिधौर के महाराजा, राजा पूरन सिंह द्वारा दान किए गए थे।


✽ इन घड़े के आकार के बर्तनों के अलावा, यहाँ एक ‘पंचसूला’ भी है, जो त्रिशूल के आकार में पाँच चाकू हैं और बहुत दुर्लभ माना जाता है।

✽ लिंगम एक बेलनाकार आकार का होता है, जिसका व्यास लगभग 5 इंच होता है और यह बेसाल्ट के एक बड़े स्लैब के केंद्र से लगभग 4 इंच की दूरी पर स्थित होता है।

✽ भक्तों का मानना है कि शिव ने सबसे पहले अरिद्र नक्षत्र की रात को खुद को ज्योतिर्लिंग में बदल लिया था, इसलिए ज्योतिर्लिंग के प्रति विशेष श्रद्धा होती है।

✽ ज्योतिर्लिंग को सर्वोच्च अंशहीन वास्तविकता माना जाता है, जिसमें से शिव आंशिक रूप से प्रकट होते हैं। ज्योतिर्लिंग मंदिर वे स्थान होते हैं जहाँ शिव एक प्रकाश के उग्र स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे।

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर का वास्तुकला | Architecture of Baidyanath Jyotirlinga Temple

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर की वास्तुकला अद्वितीय है। यह मंदिर कमल के आकार में बना हुआ है और इसकी लंबाई 72 फीट है। मंदिर की स्थापत्य कला में प्राचीन और आधुनिक दोनों शैलियों का सम्मिश्रण देखा जा सकता है। मंदिर के गर्भगृह में स्थित बैद्यनाथ शिवलिंग का मुख पूर्व दिशा की ओर है। यह मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा ने किया था। मुख्य बैद्यनाथ मंदिर के अतिरिक्त, मंदिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं के 22 अन्य छोटे-छोटे मंदिर भी स्थित हैं। मंदिर का ढांचा तीन हिस्सों में बंटा हुआ है: मुख्य मंदिर, मुख्य मंदिर का मध्य भाग और प्रवेश द्वार। गर्भगृह में शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा की गई है, जो मंदिर का सबसे पवित्र स्थान है।

कैसे पहुँचें बाबा बैद्यनाथ धाम ? | How to Reach Baidyanath Dham

बाबा बैद्यनाथ धाम, भारत का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यहाँ पहुँचने के लिए कई सुविधाजनक विकल्प उपलब्ध हैं:

रेल मार्ग से कैसे पहुँचें बाबा बैद्यनाथ धाम ?

बाबा बैद्यनाथ धाम के नजदीकी रेलवे स्टेशन जसीडीह है, जो बैजनाथ धाम से केवल 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जसीडीह स्टेशन दिल्ली-पटना-हावड़ा मेन लाइन पर स्थित है और यहाँ से विभिन्न प्रमुख स्थलों के लिए ट्रेनें उपलब्ध हैं। जसीडीह पहुँचने के बाद, देवघर तक जाने के लिए टैक्सी या ऑटो रिक्शा की सुविधा भी आसानी से मिल जाती है।

सड़क मार्ग से कैसे पहुँचें बाबा बैद्यनाथ धाम ?

देवघर प्रमुख राजमार्गों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यहाँ राँची, पटना, धनबाद, जमशेदपुर, भागलपुर जैसे शहरों से बस सेवा उपलब्ध है। सड़क मार्ग से देवघर की दूरी कुछ इस प्रकार है:

कोलकाता से : 373 किलोमीटर

गिरीडीह से : 112 किलोमीटर

पटना से : 281 किलोमीटर

दुमका से : 67 किलोमीटर

मधुपुर से : 57 किलोमीटर

शिमुलतला से : 53 किलोमीटर

ये रास्ते देवघर तक पहुँचने को और भी आसान और सुविधाजनक बनाते हैं।

वायु मार्ग से कैसे पहुँचें बाबा बैद्यनाथ धाम ?

देवघर के सबसे नजदीकी हवाई अड्डे पटना और राँची में स्थित हैं। पटना हवाई अड्डा देवघर से लगभग 270 किलोमीटर की दूरी पर है, जबकि राँची हवाई अड्डा लगभग 345 किलोमीटर की दूरी पर है। हवाई यात्रा करने वाले यात्री इन हवाई अड्डों से टैक्सी या बस के माध्यम से देवघर पहुँच सकते हैं।

Q. बाबा बैद्यनाथ धाम का प्रमुख त्यौहार ?

बाबा बैद्यनाथ धाम में महा शिवरात्रि और श्रवण मेला प्रमुख त्योहार हैं। सावन के महीने में यहाँ लाखों भक्त आते हैं। मंदिर दर्शन के लिए प्रतिदिन सुबह 4:00 बजे से दोपहर 3:30 बजे तक और शाम 6:00 बजे से रात 9:00 बजे तक खुला रहता है। मंदिर प्रांगण में प्रवेश के लिए सुबह 4:00 बजे से रात 9:00 बजे तक का समय निर्धारित है।

Q. बाबा बैद्यनाथ धाम कब जाना चाहिए?

बाबा बैद्यनाथ धाम की यात्रा का सबसे अच्छा समय श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) में होता है। इस दौरान तीर्थ यात्री सबसे पहले अजगैबीनाथ, सुल्तानगंज में एकत्र होते हैं और अपने पात्रों में पवित्र गंगाजल भरते हैं। इसके बाद वे गंगाजल को अपनी काँवर में रखकर बैद्यनाथ धाम और बासुकीनाथ की ओर यात्रा करते हैं।

Q. वैद्यनाथ की उत्पत्ति कैसे हुई?

बैद्यनाथ धाम की उत्पत्ति की एक पौराणिक कथा है। इसके अनुसार, जब रावण भगवान शिव का लिंग लंका ले जा रहा था, तो भगवान विष्णु ने उसे रोकने की कोशिश की। इस संघर्ष के दौरान लिंग का एक टुकड़ा टूटकर देवघर में गिर गया, जहां अब बाबा बैद्यनाथ का मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि यह टुकड़ा मंदिर के गर्भगृह में स्थापित है, जिसे बाबा बैद्यनाथ के नाम से पूजा जाता है।

Q. क्या हम बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को छू सकते हैं?

हां, वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग एक ऐसा अद्वितीय धार्मिक स्थल है जहाँ भक्तों को ज्योतिर्लिंग को छूने और अपने हाथों से “जलाभिषेक” करने की अनुमति है। यह विशेषता इसे अन्य पवित्र शिव मंदिरों जैसे सोमनाथ से अलग बनाती है।

Q. शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग में क्या अंतर होता है?

शिवलिंग मानव द्वारा स्थापित किए जाते हैं, जिनमें से कुछ मानव निर्मित होते हैं और कुछ स्वयंभू होते हैं जिन्हें बाद में मंदिरों में स्थापित किया जाता है। दूसरी ओर, ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के स्वयंभू अवतार होते हैं, जो ज्योति (प्रकाश) के रूप में प्रकट होते हैं।

Q. देवघर मंदिर कितना पुराना है?

इतिहास के अनुसार, सातवीं शताब्दी में सात शैवमतावलम्बी राजाओं के देवघर आगमन का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि बाबाधाम के ऐतिहासिक शिव मंदिर का निर्माण उसी काल में हुआ था। अगर उस समय मंदिर का निर्माण हुआ था, तो बाबाधाम मंदिर लगभग 1300 वर्ष पुराना है।

Q. देवघर मंदिर की कहानी क्या है?

माना जाता है कि देवघर बैद्यनाथ धाम में माता का हृदय कटकर गिरा था, इसलिए इसे शक्तिपीठ भी कहा जाता है। पुजारी बताते हैं कि यहाँ पहले शक्ति की स्थापना हुई थी और उसके बाद शिवलिंग की। भगवान भोले का शिवलिंग सती के ऊपर स्थित है, इसलिए इसे शिव और शक्ति के मिलन स्थल के रूप में भी जाना जाता है।

(Disclaimer : यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. JHARKHAND CIRCLE इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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