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History and Story of Pahadi / Pahari Mandir Ranchi | राँची का पहाड़ी मंदिर का इतिहास और कहानी | Jharkhand Circle - Jharkhand Circle

History and Story of Pahadi / Pahari Mandir Ranchi | राँची का पहाड़ी मंदिर का इतिहास और कहानी | Jharkhand Circle

Akashdeep Kumar
Akashdeep Kumar - Student
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पहाड़ी मंदिर ( Pahadi Mandir ), जिसे रांची पहाड़ी मंदिर ( Pahari Mandir Ranchi ) के नाम से भी जाना जाता है, झारखंड की राजधानी रांची में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है। यह मंदिर भगवान शिव ( Lord Shiva ) को समर्पित है और शहर के केंद्र से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पहाड़ी मंदिर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है, जिससे इस स्थान का नाम पहाड़ी मंदिर पड़ा है। इस मंदिर तक पहुँचने के लिए भक्तों को लगभग 400 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं, जो एक आध्यात्मिक यात्रा का अहसास कराती है।

Contents
देश का इकलौता ऐसा मंदिर है, जहाँ 15 अगस्त, 1947 से आज तक गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस पर ध्वजारोहण किया जाता है – This is the only temple in the country where flag hoisting is done on Republic and Independence Day from August 15, 1947 till today.पहाड़ी मंदिर की ऊँचाई लगभग 300 फीट है और 468 सीढ़ियाँ हैं – The height of the Pahari Mandir is about 300 feet and there are 468 steps.अंग्रेज इस पहाड़ी को द्वितीय विश्वयुद्ध में भी इस्तेमाल किया करते थे – The British also used this hill during the Second World War.राँची पहाड़ी में कुछ अन्य मंदिर– Some other temples in Ranchi Pahari Mandir श्रावणी मेला :राँची पहाड़ी मंदिर में – Shravani Mela : Ranchi Pahari Mandir महाशिवरात्रि : राँची पहाड़ी मंदिर में – Mahashivratri: At Ranchi Pahari Mandirवार्षिक महोत्सव : राँची पहाड़ी मंदिर में – Annual Festival : Ranchi Pahari Mandir हिमालय से भी पुरानी है पहाड़ी : The hill is older than the Himalayas

इस मंदिर का धार्मिक महत्व काफी पुराना है और यहाँ पर महाशिवरात्रि, सावन माह और अन्य महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहारों के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। पहाड़ी मंदिर से पूरे रांची शहर का खूबसूरत दृश्य दिखाई देता है, जो इसे एक प्रमुख पर्यटन स्थल भी बनाता है। इसके अलावा, इस मंदिर के प्रांगण में तिरंगा लहराया जाता है, जिससे इसे देशभक्ति का प्रतीक भी माना जाता है। पहाड़ी मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, और यह रांची शहर के प्रमुख आकर्षणों में से एक है।

देश का इकलौता ऐसा मंदिर है, जहाँ 15 अगस्त, 1947 से आज तक गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस पर ध्वजारोहण किया जाता है – This is the only temple in the country where flag hoisting is done on Republic and Independence Day from August 15, 1947 till today.

राँची का पहाड़ी मंदिर देश का इकलौता ऐसा मंदिर है, जहाँ 15 अगस्त, 1947 से आज तक गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस पर ध्वजारोहण किया जाता है। जब देश आजाद हुआ तो यहाँ पर तिरंगा फहराया गया। इस पहाड़ को स्वाधीनता पूर्व फाँसी टुंगरी के नाम से जाना जाता था। हालाँकि इसका वास्तविक नाम राँची बुरू है। यह नाम अब खो गया है। यहाँ कई स्वतंत्रता सेनानियों को अंग्रेजों द्वारा फाँसी की सजा दी गई। आज भी वह बरगद का पेड़ अपना इतिहास छिपाए है।

पहाड़ी मंदिर की ऊँचाई लगभग 300 फीट है और 468 सीढ़ियाँ हैं – The height of the Pahari Mandir is about 300 feet and there are 468 steps.

इस पहाड़ की ऊँचाई लगभग 300 फीट है और 468 सीढ़ियाँ हैं। इस पहाड़ी का भू-भाग लगभग 26 एकड़ में फैला हुआ है। पहाड़ी मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। पहाड़ी स्थित नाग देवता का स्थल 55 हजार साल पुराना बताया जाता है। 1905 के आस-पास ही पहाड़ी के शिखर पर शिव मंदिर का निर्माण हुआ था। संभव है, इसका निर्माण पालकोट के राजा ने करवाया हो, क्योंकि यह पहाड़ी उन्हीं के अधीन थी। खैर, 1908 में पालकोट के राजा ने इस पहाड़ी को नगरपालिका के एक अंग्रेज अधिकारी ने मात्र 11 रुपए में ले लिया था।

अंग्रेज इस पहाड़ी को द्वितीय विश्वयुद्ध में भी इस्तेमाल किया करते थे – The British also used this hill during the Second World War.

हस्तांतरण आलेख में यह शर्त लिखी हुई थी कि पहाड़ी पर स्थित मंदिर सार्वजनिक होगा। 1917 में एम.जी. हेलेट द्वारा प्रकाशित बिहार-उड़ीसा गजेटियर में राँची पहाड़ी की चोटी पर शिव मंदिर का उल्लेख है। हालाँकि अंग्रेज इस पहाड़ी को द्वितीय विश्वयुद्ध में भी इस्तेमाल किया करते थे। पहाड़ी पर ही नाग बाबा का भी मंदिर है। 

झारखंड व राँची आनेवाले पर्यटक एक बार जरूर पहाड़ी मंदिर में जाकर बाबा पहाड़ी का दर्शन करना चाहते हैं। इस पहाड़ी से राँची शहर की छटा देखते बनती है। आदिवासी बहुत प्राचीन काल से ही नाग देवता की पूजा करते आ रहे हैं। नाग देवता राँची के नगर देवता भी हैं। नाग देवता नागवंशियों के कुल देवता भी हैं। आदिवासी सावन में पहले नाग देवता की पूजा करते हैं। उसके बाद बाबा पहाड़ी की पूजा शुरू होती है।

राँची पहाड़ी में कुछ अन्य मंदिर– Some other temples in Ranchi Pahari Mandir

राँची पहाड़ी की चोटी पर बाबा पहाड़ी तो है ही, शिखर पर भी हनुमानजी की भी प्रतिमा है। उसके पीछे एक गुफा है, जिसमें नाग देवता की पूजा-अर्चना की जाती है। पहाड़ी के मध्य भाग में बाबा विश्वनाथ का मंदिर है। यहीं पर लोगों की शादियाँ होती हैं। सिंहद्वार से प्रवेश करते ही बाईं ओर शिव मंदिर और दाहिनी ओर काली मंदिर है। ये सब हाल के निर्माण हैं।

पहाड़ी मंदिर पर तो वैसे हजारों श्रद्धालु रोज ही दर्शन करने जाते हैं। लेकिन यहाँ चार ऐसे उत्सव होते हैं, जिनमें हजारों लोग शामिल होते हैं। इनमें सावन मास, महाशिवरात्रि, वार्षिक महोत्सव एवं गणतंत्र दिवस-स्वतंत्रता दिवस समारोह हैं।

श्रावणी मेला :राँची पहाड़ी मंदिर में – Shravani Mela : Ranchi Pahari Mandir

बैजनाथ धाम, देवघर के बाद राँची के पहाड़ी मंदिर पर भी भक्तों का ताँता लगता है। हर सोमवार को यहाँ लगभग पचास हजार से अधिक श्रद्धालु जल चढ़ाते हैं। राँची ही नहीं, यहाँ आस-पास के जिलों से भी लोग आते हैं। रविवार की पूरी रात ही राँची की सड़कें गुलजार रहती हैं। बोलबम का नारा लगाते हुए भक्तगण स्वर्णरेखा नदी से जल उठाकर बाबा के दरबार में पहुँचते हैं। मंदिर से नदी की दूरी 12 कि.मी. है। नदी से आधी रात को भक्त जल लेकर चलते हैं और लगभग दो बजे मंदिर पहुँचते हैं। सीढ़ियाँ भक्तों से भर जाती हैं। चार बजे बाबा का पट खुलता है। इसके बाद तो जल चढ़ाने के लिए भक्तों की भीड़ टूट पड़ती है। यहाँ पर सुरक्षा की भी भारी व्यवस्था रहती है। भीड़ को देखते हुए 2012 से एक वैकल्पिक रास्ता भी बना दिया गया है। अब जाने और आने के अलग-अलग रास्ते हो गए हैं। इससे भक्तों को काफी राहत मिली है। श्रावण मास में सोमवार के अलावा भी हर दिन यहाँ मेले जैसा दृश्य रहता है। सावन में हर दिन बाबा का अद्भुत शृंगार किया जाता है।

महाशिवरात्रि : राँची पहाड़ी मंदिर में – Mahashivratri: At Ranchi Pahari Mandir

हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का बड़ा महत्त्व है। इस दिन पूरी श्रद्धा के साथ भगवान्शि व की पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन भगवान् शिव को बिल्व पत्र, धतूरा, फूल, जल, दूध, मधु आदि चढ़ाया जाता है। इस दिन भगवान् शिव का जलाभिषेक भी किया जाता है। कहते हैं कि इसी दिन शिव और पार्वती एक सूत्र में बँधे थे। यह पर्व यहाँखास ढंग से मनाया जाता है। इस दिन भगवान् शिव की बरात निकलती है। मुख्यमंत्री से लेकर अन्य नेता भी शामिल होते हैं। बरात पूरे शहर में घूमती है। जगह- जगह इसका स्वागत किया जाता है। कई तरह की झाँकियाँ निकली जाती हैं। बरात मेंभूत-प्रेत को देखने के लिए लोग सड़कों के किनारे खड़े रहते हैं। शहर में बाबा भोले में की बरात देखते बनती है। भक्तगण शंकरजी की जय और ॐ नमः शिवाय का उद्घोष करते हुए चलते हैं।

वार्षिक महोत्सव : राँची पहाड़ी मंदिर में – Annual Festival : Ranchi Pahari Mandir

मंदिर में वार्षिक महोत्सव दिसंबर माह में हर साल मनाया जाता है। इस मौके पर काफी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इस दिन भगवान् को छप्पन भोग चढ़ाया जाता है। बाबा का शृंगार किया जाता है। दिनभर भजनों की गंगा प्रवाहित होती है। राज्य के दूसरे हिस्सों से भी भक्तगण इस कार्यक्रम में भाग के लिए आते हैं।

हिमालय से भी पुरानी है पहाड़ी : The hill is older than the Himalayas

राँची बुरू हिमालय से भी पुराना है। इस पहाड़ी का अध्ययन करने के लिए सौ साल पहले तक वैज्ञानिक आते थे। शोध से ही पता चला कि यह पहाड़ प्रोटेरोजोइक काल का है, जिसकी आयु लगभग 4500 मिलियन वर्ष है। राँची शहर का यह इकलौता पहाड़ है, जो शहर के अन्य पहाड़ बरियातू हिल या टैगोर हिल से भी लाखों साल पुराना है। इसकी बनावट भी दूसरे पहाड़ों से भिन्न है। राँची के पर्यावरणविद् डॉ. नीतीश प्रियदर्शी का कहना है कि यह पहाड़ मुख्यतः कायांतरित शैल चट्टानों से बना है और यह धारवाड़ काल का है, जिसकी आयु लगभग 3500 मिलियन वर्ष है। कुछ भूवैज्ञानिकों का मानना है कि इस पहाड़ की आयु 980 से 1200 मिलियन वर्ष है। इस पहाड़ के चट्टान का भौगोलिक नाम ‘गानेटिफेरस सिलेमेनाइट शिष्ट’ है। इसे खोंडालाइट के नाम से पुकारा जाता है। राँची शहर के दूसरे पहाड़ ग्रेनाइट नीस एवं शिष्ट के बने हैं, जो इसके बाद के काल के हैं, यानी 970-890 मिलियन वर्ष । छोटानागपुर के लगभग सारे हाड़ अपरदन के कारण समतल हो गए हैं एवं कठोर भाग ज्यों-का-त्यों खड़ा रह गया है। यदि कोई श्रद्धालु बाबा के दर्शन के लिए सीढ़ियों के सहारे ऊपर जाता है तो उसे यह भी जानना चाहिए कि इस पहाड़ की आयु करोड़ों साल है और यह संभवतः विश्व के पुरातन पहाड़ियों में से एक है। यह अनंत काल से छोटानागपुर में होनेवाले भूगर्भिक बदलाव का अकेला सबसे बड़ा पुराना गवाह है।

क्या आप कभी रांची के पहाड़ी मंदिर गए हैं? अगर गए हैं तो कृपया बताएं कि आपका अनुभव कैसा रहा। हमें बताएँ कि रांची का पहाड़ी मंदिर आपको कैसा लगा। 😊 अगर अभी तक नहीं गए हैं, तो ज़रूर जाएं।

बाकी बातें बाद में, झारखंड सर्कल की ओर से बहुत-बहुत धन्यवाद इस पोस्ट को पढ़ने के लिए। अगर आप झारखंड से संबंधित और चीजें पढ़ना चाहते हैं, तो झारखंड सर्कल को फॉलो कर लें। ☺️

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By Akashdeep Kumar Student
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