बिनोद बिहारी महतो: झारखंड आंदोलन के अनमोल रत्न | Binod Bihari Mahato Biography | Jharkhand Circle

Akashdeep Kumar
Akashdeep Kumar - Student
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Binod Bihari Mahato Biography : झारखंड आंदोलन का जब भी जिक्र होगा, बिनोद बिहारी महतो का नाम सबसे पहले आएगा। बिनोद बिहारी महतो एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने झारखंड की माटी, समाज और संस्कृति के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया। वह न केवल एक वकील और राजनीतिज्ञ थे, बल्कि झारखंड आंदोलन के प्रबल योद्धा भी थे। उनकी कहानी संघर्ष और सफलता का प्रतीक है। उनका जीवन झारखंड के सपने को साकार करने के लिए संघर्ष और समाज सुधार का दस्तावेज है। आइए, इस महान शख्सियत के जीवन के विभिन्न पहलुओं को जानते हैं।

Contents
बचपन और प्रारंभिक जीवन | Childhood and early lifeशिक्षा और करियर की शुरुआत | Education and career beginningराजनीतिक जीवन की शुरुआत | Beginning of political lifeव्यक्तिगत जीवन | Personal lifeझारखंड आंदोलन और झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन | Jharkhand Movement and formation of Jharkhand Mukti Morchaचुनावी सफर: संघर्ष, सफलता और नेतृत्व की मिसाल | Election journey: example of struggle, success and leadership1952: पहली चुनावी कोशिश | 1952: First election attempt1971: धनबाद लोकसभा सीट से प्रयास | 1971: Attempt from Dhanbad Lok Sabha seat1980: पहली बार विधायक बनने का गौरव | 1980: Pride of becoming MLA for the first time1985: सिंदरी से जीत | 1985: Won from Sindri1990: दो सीटों से विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला | 1990: Decision to contest assembly elections from two seats1991: गिरिडीह से लोकसभा सदस्य बनने का गौरव | 1991: Pride of becoming Lok Sabha member from Giridihचुनावी सफर का प्रभाव | Impact of election journeyसमाज सुधार और शिक्षा में योगदान | Contribution to social reform and educationझारखंड के लिए संघर्ष | Struggle for jharkhandअंतिम दिन और विरासत | Last days and legacyनिष्कर्ष: झारखंड के सच्चे सपूत | Conclusion: True son of Jharkhand10 महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर बिनोद बिहारी महतो से संबंधित
पूरा नामबिनोद बिहारी महतो
जन्म23 सितंबर 1923, बलियापुर, धनबाद, झारखंड
माता-पितापिता: महेंद्र महतो (किसान), माता: मंदाकिनी देवी
शिक्षाप्राथमिक: बलियापुर
मैट्रिक: डीएवी झरिया, धनबाद हाई इंग्लिश स्कूल
इंटरमीडिएट: पीके राय मेमोरियल कॉलेज
स्नातक: रांची कॉलेज
लॉ डिग्री: पटना लॉ कॉलेज
करियर की शुरुआतशिक्षक, क्लर्क, अधिवक्ता
परिवारपत्नी: फूलमनी देवी बच्चे: 5 बेटे और 2 बेटियां
निधन18 दिसंबर 1991, दिल्ली
Binod Bihari Mahato

बचपन और प्रारंभिक जीवन | Childhood and early life

23 सितंबर 1923 को धनबाद जिले के बलियापुर प्रखंड के बड़ादाहा गांव में एक साधारण कुड़मी महतो परिवार में बिनोद बिहारी महतो का जन्म हुआ। उनके पिता महेंद्र महतो किसान थे और माता मंदाकिनी देवी एक गृहिणी थीं। बचपन में परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, लेकिन उनकी शिक्षा के प्रति लगन हमेशा मजबूत रही। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा बलियापुर से प्राप्त की और आगे की पढ़ाई डीएवी झरिया और धनबाद हाई इंग्लिश स्कूल से पूरी की। उनकी यह यात्रा आसान नहीं थी, लेकिन कठिनाइयों ने उन्हें मजबूत और दृढ़ बनाया।

शिक्षा और करियर की शुरुआत | Education and career beginning

बिनोद बिहारी महतो ने पीके राय मेमोरियल कॉलेज से इंटर और रांची कॉलेज से स्नातक किया। उन्होंने पटना लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री प्राप्त की। शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने धनबाद न्यायालय में दैनिक मजदूरी के रूप में लेखन कार्य किया। इसके साथ ही उन्होंने एक शिक्षक के रूप में भी काम किया। बाद में, उन्हें आपूर्ति विभाग में क्लर्क की नौकरी मिली। लेकिन उनका सपना बड़ा था। उन्होंने क्लर्क की नौकरी छोड़ दी और धनबाद में वकालत शुरू की। कुछ ही वर्षों में वे धनबाद के प्रतिष्ठित अधिवक्ताओं में शामिल हो गए।

राजनीतिक जीवन की शुरुआत | Beginning of political life

बिनोद बिहारी महतो का राजनीतिक जीवन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से शुरू हुआ। 25 वर्षों तक वे पार्टी के सक्रिय सदस्य रहे। 1967 में जब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी विभाजित हुई, तो वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) से जुड़ गए।
1971 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने धनबाद से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के टिकट पर चुनाव लड़ा और दूसरा स्थान प्राप्त किया।

व्यक्तिगत जीवन | Personal life

बिनोद बिहारी महतो ने फुलमनी देवी से शादी की। उनके परिवार में पांच बेटे और दो बेटियां थीं। वे अपने परिवार के प्रति समर्पित थे, लेकिन उनका असली परिवार झारखंड की जनता थी।

झारखंड आंदोलन और झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन | Jharkhand Movement and formation of Jharkhand Mukti Morcha

1972 में उन्होंने शिबू सोरेन और ए.के. राय के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की स्थापना की। यह संगठन झारखंड की स्वतंत्रता और अधिकारों के लिए समर्पित था। महतो को झामुमो का संस्थापक अध्यक्ष बनाया गया, जबकि शिबू सोरेन को सचिव। बिनोद बिहारी महतो का मानना था कि कांग्रेस और जनसंघ जैसे दल सामंतवादियों और पूंजीपतियों के लिए थे, जबकि दलित और पिछड़ी जातियों के लिए कोई दल नहीं था। इसी कारण उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा की नींव रखी।

चुनावी सफर: संघर्ष, सफलता और नेतृत्व की मिसाल | Election journey: example of struggle, success and leadership

बिनोद बिहारी महतो का चुनावी सफर भारतीय राजनीति और झारखंड आंदोलन का एक सुनहरा अध्याय है। यह सफर केवल राजनीतिक महत्वाकांक्षा का नहीं था, बल्कि झारखंड के अधिकारों और जनता की भलाई के लिए समर्पित था। उनके द्वारा लड़ी गई हर चुनावी लड़ाई झारखंड आंदोलन की एक नई दिशा को प्रदर्शित करती है।

1952: पहली चुनावी कोशिश | 1952: First election attempt

1952 में बिनोद बिहारी महतो ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत झरिया विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़कर की। यह चुनाव भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर लड़ा गया था। हालांकि, वह यह चुनाव हार गए। यह हार उनके संघर्ष को समाप्त नहीं कर सकी, बल्कि उनके भीतर जनता के लिए काम करने का जज्बा और मजबूत कर गई।

1971: धनबाद लोकसभा सीट से प्रयास | 1971: Attempt from Dhanbad Lok Sabha seat

1967 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी विभाजित हुई, जिसके बाद महतो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) से जुड़ गए। 1971 में उन्होंने धनबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा। इस चुनाव में उन्होंने मेहनत से प्रचार किया और जनता से सीधा संवाद स्थापित किया। हालांकि, वह इस चुनाव में जीत नहीं सके, लेकिन उन्होंने दूसरा स्थान प्राप्त किया। यह उनके लिए एक बड़ा मील का पत्थर साबित हुआ, क्योंकि उनकी लोकप्रियता और आंदोलन के प्रति जनता का समर्थन बढ़ने लगा।

1980: पहली बार विधायक बनने का गौरव | 1980: Pride of becoming MLA for the first time

1972 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की स्थापना के बाद, बिनोद बिहारी महतो ने 1980 के बिहार विधानसभा चुनाव में टुंडी विधानसभा क्षेत्र से झामुमो के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। यह चुनाव उनके लिए ऐतिहासिक साबित हुआ। पहली बार विधायक बनकर उन्होंने विधानसभा में झारखंड के मुद्दों को जोर-शोर से उठाया। टुंडी की जनता ने उन्हें अपना प्रतिनिधि चुनकर उनके प्रति अपना विश्वास व्यक्त किया।

1985: सिंदरी से जीत | 1985: Won from Sindri

1985 के विधानसभा चुनाव में बिनोद बिहारी महतो ने सिंदरी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। यह जीत झारखंड आंदोलन के प्रति उनकी निष्ठा और जनता के समर्थन का परिणाम थी। इस कार्यकाल में उन्होंने सिंदरी क्षेत्र के विकास के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए। उन्होंने विस्थापितों के पुनर्वास, शिक्षा और आधारभूत संरचना के विकास को प्राथमिकता दी।

1990: दो सीटों से विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला | 1990: Decision to contest assembly elections from two seats

1990 के बिहार विधानसभा चुनाव में बिनोद बिहारी महतो ने एक साहसिक कदम उठाते हुए टुंडी और सिंदरी, दोनों सीटों से चुनाव लड़ा। जनता के बीच उनकी लोकप्रियता इतनी अधिक थी कि उन्होंने दोनों सीटों पर विजय हासिल की। इस चुनावी जीत ने उन्हें झारखंड आंदोलन के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक बना दिया। यह उनकी राजनीतिक परिपक्वता और नेतृत्व क्षमता का प्रतीक था।

1991: गिरिडीह से लोकसभा सदस्य बनने का गौरव | 1991: Pride of becoming Lok Sabha member from Giridih

1991 में देश में मध्यावधि आम चुनाव हुए। बिनोद बिहारी महतो ने गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा। यह चुनाव उनके राजनीतिक जीवन का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ था। गिरिडीह की जनता ने उन्हें भारी मतों से विजयी बनाया और वह लोकसभा के सदस्य बने। संसद में उन्होंने झारखंड के मुद्दों को मजबूती से उठाया। उनकी भाषण शैली और विषयों पर गहरी समझ ने उन्हें एक प्रभावी सांसद के रूप में स्थापित किया।

चुनावी सफर का प्रभाव | Impact of election journey

बिनोद बिहारी महतो का चुनावी सफर केवल पद पाने तक सीमित नहीं था। वह हर चुनाव को झारखंड आंदोलन की दिशा में एक कदम मानते थे। उनके चुनावी अभियानों का मुख्य उद्देश्य झारखंड के मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर पर ले जाना था। उन्होंने हर चुनावी मंच से झारखंड के अधिकारों, विस्थापन, शिक्षा और विकास की बात की। उनकी जीत न केवल उनके व्यक्तिगत प्रयासों का परिणाम थी, बल्कि यह झारखंड की जनता के विश्वास का प्रमाण थी। वह चुनाव को संघर्ष का एक माध्यम मानते थे, और उनकी यह सोच उन्हें जनता के दिलों में अमर कर गई। बिनोद बिहारी महतो का चुनावी सफर, झारखंड के आंदोलन और राजनीति में उनकी भूमिका को दर्शाता है। उनकी यह यात्रा एक प्रेरणा है कि जब लक्ष्य स्पष्ट हो और नीयत साफ हो, तो कठिनाइयां भी रास्ता नहीं रोक सकतीं।

समाज सुधार और शिक्षा में योगदान | Contribution to social reform and education

बिनोद बिहारी महतो सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं रहे। वे समाज सुधार के लिए भी सक्रिय थे। उन्होंने शिवाजी समाज की स्थापना की और समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। शिक्षा के प्रति उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल और कॉलेज स्थापित करवाए। अपने निजी पैसे से इन संस्थानों का संचालन करते रहे। उनके प्रयासों ने झारखंड के शिक्षा स्तर को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

झारखंड के लिए संघर्ष | Struggle for jharkhand

महतो ने झारखंड आंदोलन के लिए अपनी कलम को हथियार बनाया। उन्होंने पंचेत डैम, मैथन डैम और सिंदरी कारखानों के कारण विस्थापित हुए लोगों के लिए आवाज उठाई। वे झारखंड के अधिकारों के लिए हर मंच पर लड़ते रहे।

अंतिम दिन और विरासत | Last days and legacy

18 दिसंबर 1991 को दिल्ली के एक अस्पताल में हृदय गति रुकने के कारण बिनोद बिहारी महतो का निधन हो गया। उनकी मृत्यु झारखंड के लिए एक अपूरणीय क्षति थी।उनकी स्मृति में धनबाद स्थित विनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय उनकी विरासत को सम्मानित करता है।

निष्कर्ष: झारखंड के सच्चे सपूत | Conclusion: True son of Jharkhand

बिनोद बिहारी महतो सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि झारखंड आंदोलन का इतिहास हैं। उन्होंने झारखंड की माटी, संस्कृति और अधिकारों के लिए जो किया, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बना रहेगा। उनका जीवन हमें सिखाता है कि संघर्ष से ही सफलता मिलती है। आज उनकी वजह से झारखंड के लोग अपने अधिकारों के लिए जागरूक हैं।
झारखंड के इस महानायक को नमन 🙏
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10 महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर बिनोद बिहारी महतो से संबंधित

प्रश्न 1: बिनोद बिहारी महतो का जन्म कब और कहाँ हुआ?
उत्तर:
बिनोद बिहारी महतो का जन्म 23 सितंबर 1923 को धनबाद के बलियापुर गाँव में हुआ था।
प्रश्न 2: बिनोद बिहारी महतो की शैक्षिक पृष्ठभूमि क्या थी?
उत्तर:
उन्होंने डीएवी झरिया और धनबाद हाई इंग्लिश स्कूल से मैट्रिक, पीके राय मेमोरियल कॉलेज से इंटर, रांची कॉलेज से स्नातक और पटना लॉ कॉलेज से लॉ की पढ़ाई पूरी की।
प्रश्न 3: बिनोद बिहारी महतो को राजनीति में आने की प्रेरणा कहाँ से मिली?
उत्तर:
राष्ट्रीय दलों जैसे कांग्रेस और जनसंघ की नीतियों से असंतोष, जो सामंतवादियों और पूंजीपतियों का समर्थन करती थीं, ने उन्हें आदिवासियों और पिछड़ी जातियों के लिए काम करने को प्रेरित किया।
प्रश्न 4: झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की स्थापना कब हुई, और इसके मुख्य सदस्य कौन थे?
उत्तर:
झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना 1972 में बिनोद बिहारी महतो, शिबू सोरेन, और ए.के. राय ने की थी।
प्रश्न 5: बिनोद बिहारी महतो ने शिक्षा के क्षेत्र में क्या योगदान दिया?
उत्तर:
उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल और कॉलेज स्थापित किए और उन्हें अपने निजी धन से संचालित किया।
प्रश्न 6: बिनोद बिहारी महतो की पहली चुनावी सफलता कब मिली?
उत्तर:
1980 में वह पहली बार टुंडी विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए।
प्रश्न 7: 1990 के विधानसभा चुनावों में बिनोद बिहारी महतो ने क्या उपलब्धि हासिल की?
उत्तर:
उन्होंने टुंडी और सिंदरी, दोनों विधानसभा सीटों से चुनाव लड़कर जीत हासिल की।
प्रश्न 8: सांसद के रूप में बिनोद बिहारी महतो ने कौन-कौन से मुद्दे उठाए?
उत्तर:
उन्होंने झारखंड के अधिकारों, औद्योगिक परियोजनाओं के कारण विस्थापन, और आदिवासी कल्याण के मुद्दों को संसद में जोर-शोर से उठाया।
प्रश्न 9: उन्होंने सामाजिक बुराइयों के खिलाफ किस संगठन की स्थापना की?
उत्तर:
उन्होंने सामाजिक बुराइयों से लड़ने के लिए “शिवाजी समाज” की स्थापना की।
प्रश्न 10: आज बिनोद बिहारी महतो को कैसे याद किया जाता है?
उत्तर:
उन्हें बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय और झारखंड आंदोलन के महानायक के रूप में याद किया जाता है।

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